हास्य व्यंग्य – गुड़िया कब नाचेगी ?
देखो, देखो , मदारी खेल दिखाने दोबारा आ गया। ये वाला मदारी क्या खेल दिखाता है! वाह… बीते पंचक से पहले वाले दशक में भी एक मदारी आया था। वह भी क्या मदारी था! पूरा मौनी बाबा.. इस तरह आपस में बातें करते करते लम्पट और पोपट मदारी के खेल तक पहुंच गए।
मदारी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र की तरह अपनी धुन में बाँच रहा था – “आओ, देखो, नया खेल। अभी देखना, दस मिनट में यह गुड़िया, जो चादर पर बैठी है, बैठे-बैठे ही नाचेगी। आँख खोलकर गौर से देखना, यह बेजान गुड़िया अभी नाचेगी। हाँ, मित्रों, यह गुड़िया नाचेगी।”
यह खेल देखने को चारों तरफ से लोग इकट्ठा हो गए। इतने में मदारी ने घोषणा पत्र को दर-किनार करते हुए कहा- “आप में से जो भी ग़रीब किसान व दलित व्यक्ति-मुफ्त ऋण, आरक्षण चाहता हो, वह आगे आकर मेरेे हाथ की छड़ी को छुए।”
एक हसनैन सज्जन पोपट ने आगे बढ़कर छड़ी को पकड़ लिया। मदारी जोर से चिल्लाया- “अब तू यहाँ से हिल भी नहीं सकता, अगर हिला, तो तेरे मुँह से खून निकलने लगेगा।” पोपट डर के मारे सुन्न होकर खड़ा रह गया। इतने में भीड़ से लम्पट की आवाज आई- “गुड़िया कब नाचेगी?”
मदारी ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, जैसे वह चुनावी घोषणा पत्र का मुद्दा ही न हो।
फिर मदारी ने अपने बन्दर को मैदान में उतारा और घोषणा की- “मित्रों, अभी यह बन्दर आपकी आँखों के सामने अंग्रेजी बोलकर दिखाएगा, जिसे पोपट हिन्दी में आपको सुनाएगा।” पोपट तपाक से बोला- “मुझे अंग्रेजी नहीं आती।”
मदारी फिर चिल्लाया- “इस आदमी ने शिक्षा-व्यवस्था का खेल बिगाड़ा है, यह विपक्ष का आदमी लगता है। इसलिए मित्रों, आज रात आठ बजे के बाद… ” इतना सुनते ही पोपट गिड़गिड़ाने लगा। तभी भीड़ में से किसी ने फिर पूछा- “यह गुड़िया कब नाचेगी?” मदारी ने उसे भी फालतू समझा, और अनसुना कर दिया।
अचानक मदारी ने झोले में से एक पिटारी निकाली, बीन बजाई, साँप को नचाया। फिर बन्दर को अपनी टोपी देते हुए कहा- “पैसा वसूल।”
बन्दर ने पैसे जमा किए, मदारी ऐसे जेब में रखते हुए बोला- “यह पैसे मैंने ‘राम-मन्दिर’ के लिए इकट्ठा किए हैं। जब तक मन्दिर नहीं बन जाता, मैं आपके गाँव आता रहूँगा, और आप सब जिस तरह नेताओं को वोट देते हैं, मुझे पैसे देते रहिएगा।” “जब भी ‘राम-मन्दिर’ बनेगा, इन पैसों को मैं अयोध्या जाकर चढ़ाऊँगा।”
इतने में लम्पट फिर से चिल्लाया- “पर यह तो बताओ- गुड़िया कब नाचेगी?” मदारी ने लम्पट को देखा, मुस्कुराया, और गुड़िया को उठाकर वापस झोली में रखते हुए बोला- “दोबारा आऊँगा, गुड़िया तब नाचेगी।”
मदारी चला गया। जनता बड़बड़ाते हुए अपने घर जाने लगी – ” समझ में नहीं आता- आखिर , गुड़िया कब नाचेगी?”
— राम दीक्षित आभास