कविता

दानव दहेज का

रोती बिलखती बोली बेटी अपने बाबा से अँगनाई मे
दहेज के दम पर दूल्हा ना खरीदो बाबा मेरी सगाई में
आज तेरे चंचल इठलाती खिलखिलाती मस्त पवन हूँ
कल पत्थर की रोती सिसकती दीवार बना दी जाऊंगी
तुम जितना ज्यादा दोगे दहेज ये उतना ही मुंह फाडेंगे
कल मांग अगर ना इनकी पूरी होगी ये तेरी बिटिया को
जीते जी जिंदा जलती आग में दहन कर डालेंगे
तेरे घर में कन्या बन जन्मी बाबा ना मेरा अपमान करो
इन दहेज लोभियों के हाथों में मत मेरा सम्मान करो
माँग सिन्दूर हाथ में मेंहदी पैरों में भरा महावर होगा
जाने किस पल कब क्या हो जाये बस यही डर होगा
गर दहेज देकर किया बिदा तो सुन लो बाबा सुलगेंगे
मेरे सपने और आग लगेगी सुंदर पवन पुरवाई में
दहेज के दम पर दूल्हा ना खरीदो बाबा मेरी सगाई में
गाड़ी टीवी कूलर सब तेरी बेटी पर हरपल भारी होगा
हर रोज बिटिया के जीवन में एक तमाशा जारी होगा
तेरी बेटी से ज्यादा लोग दहेज और सामान देखने
आयेंगे  तेरी अपनी बिटिया की मुँह दिखाई में
तेरी ये चिडि़या फिर उडती चिडि़या ना रह पायेगी
लाख दुख सहेगी पर तुझसे ना कुछ  कह पायेगी
ये दहेज लोभी सारा जीवन तुमसे माँग करेंगे तुम
इनको कितना और कब तक बाबा दहेज  दे पाओगे
बेटी की खुशियों के बदले घर द्वार सब बेचते जाओगे
क्या हासिल होगा तुम्हें बाबा मानवता की रूसवाई में
दहेज के दम पर दूल्हा ना खरीदो बाबा मेरी सगाई में
मेरे सपने पलकों को मेरे अपने अश्रु जल से नहलायेंगे
गंगन चूड़ी चुप रहेंगे दहेज लोभी मंद मंद मुस्कायेंगे
सिंगार मेरा रोयेगा ये तानो से हरपल मुझे सतायेंगे
बेटी हूं मैं तुम्हारी बाबा मुझपर बस ये उपकार करो
द्वार पे अपने इन दहेज लोभियों का ना सत्कार करो
अभी से ना तुम मेरा ब्याह करो ध्यान दो मेरी पढाई में
दहेज के दम पर दूल्हा ना खरीदो बाबा मेरी सगाई में
आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश