हास्य व्यंग्य

कांग्रेसी नमक का आत्मालाप

दंगाई देश के सम्मानित नागरिक होते हैं, वे भी देश का नमक खाते हैं, उनका भी घर है, परिवार है, समाज है I दंगाइयों की भी निजता होती है, उनका भी अपना निजी जीवन होता है, उनके पोस्टर सार्वजनिक स्थलों पर लगाकर उनकी निजता पर सरकार ने हमला किया है I सरकार जवाब दे कि उसने इन दंगाई महाप्रभुओं की निजता पर हमला क्यों किया I माना कि दंगाइयों ने कुछ बसों में आग लगाई, कुछ वाहनों में तोड़फोड़ की, कुछ सरकारी भवनों को नुकसान पहुँचाया I इस दंगे में दस – बीस लोग मारे गए, कुछ महिलाएं विधवा हुईं, कुछ माताएं निपूती हुईं लेकिन इससे सरकार को यह अधिकार नहीं मिल जाता कि वह दंगाइयों के पोस्टर लगाकर उनकी इज्जत को नीलाम करे I अरे भाई ! दंगे तो होते ही रहते हैं और आगे भी होते रहेंगे I इसे सरकारें नहीं रोक सकती हैं I सरकार का काम दंगा रोकना नहीं है, दंगे के बाद आँसू बहाना, मुआवजा बाँटना और सार्वजनिक निंदा करना सरकार का काम है I दंगों का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है, दंगे ने समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र और अपराधशास्त्र को समृद्ध किया है I यदि सरकार दंगे को रोक देगी तो अपराधशास्त्र की उन्नति कैसे होगी, उसमें नए – नए पाठ्यक्रम कैसे जुड़ेंगे और अनुसंधानकर्ताओं को अनुसंधान हेतु नए विषय कैसे मिलेंगे I सरकार को यह देखना चाहिए कि दंगे से कितने लाभ प्राप्त होते है I दंगे के बाद ही तो “जब बड़े पेड़ गिरते हैं तो धरती हिलती है” जैसे ऐतिहासिक वाक्य का अविष्कार हुआ था I दंगे होना महत्वपूर्ण नहीं है, दंगे के बाद सार्वजनिक निंदा करना, भाईचारे की कमीज बाँटना और गंगा – जमुनी तहजीब की चटनी परोसना महत्वपूर्ण है I दंगाइयों को अपनी निजता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है, सरकार उनके पोस्टर लगाकर उनके निजी जीवन में दखल नहीं दे सकती है I सरकार को दंगाइयों के विरुद्ध कार्रवाई करने का अधिकार किसने दे दिया I यह अधिकार कांग्रेसी नमक का है कि वह दंगाई को सजा दे या उसे भारत रत्न I कांग्रेसी नमक यह कभी सहन नहीं करेगा कि कोई भी सरकार दंगाइयों की साख को मिट्टी में मिलाने का प्रयास करे I दंगा देश और समाज के लिए बहुत जरुरी है I दंगे से पुलिस को सतर्क – सावधान रहने और खुद को चाकचौबंद करने की प्रेरणा मिलती है I दंगे के कारण पुलिस और प्रशासन को भीड़ के मनोविज्ञान को समझने और भीड़ की चुनौतियों से जूझने का कौशल प्राप्त होता है I दंगे के कारण नेताओं को अपनी राजनीति को धार देने, राजनैतिक गोटियाँ बिठाने और सहानुभूति का महाप्रसाद बाँटने का सुयोग मिलता है I दंगों के कारण लेखकों – कवियों को पुस्तकें, कहानियाँ, कविताएँ और उपन्यास लिखने के लिए कच्चे माल मिलते हैं I क्या सरकार साहित्य का विकास अवरुद्ध कर देना चाहती है ? दंगा जरुरी है, यह होता रहना चाहिए I दंगे से समाज में विभाजन होता है, लोग जातियों – उपजातियों, वर्गों – उपवर्गों में बँटते हैं और समाजशास्त्रियों को नए क्षेत्र के अध्ययन – अनुसंधान का अवसर मिलता है I दंगे से नेताओं के लिए वोटों की खेती करना आसान व सुविधाजनक हो जाता है I सरकार ने दंगा बहादुरों के पोस्टर लगाकर अच्छा नहीं किया है I पोस्टर लगाने के बाद भला समाज में इनकी क्या इज्जत रह जाएगी I इस पोस्टरबाजी से तो दंगा प्रेमी बंधु – बांधव हताश हो जाएँगे और दंगे रुक जाएँगे जिसके कारण पुलिस बल बेकार हो जाएँगे, दंगा रोधी दस्ते सुस्त पड़ जाएँगे I दंगे के कारण नए – नए बटालियन का गठन होता है जिसमें हजारों युवकों को नौकरी मिलती है I यदि दंगे रुक जाएँगे तो बेरोजगारी बढ़ जाएगी I बेरोजगारी के कारण लोग आत्महत्या करेंगे और समाज में बिखराव होने लगेगा I सरकार क्यों बेरोजगारी बढ़ाना और समाज में विघटन उत्पन्न करना चाहती है I दंगे से हमारा शब्दकोश कितना समृद्ध हुआ है, सरकार को इसका भान नहीं है I दंगाई, दंगारोधी, दंगाबाज, दंगाकारी, दंगैत, दंगा – फ़साद जैसे नए – नए शब्दों से शब्दकोशों का गौरव बढता है I हमलोग यह प्रयास कर रहे हैं कि ‘कांग्रेसी नमक’ जैसे पवित्र और स्वामिभक्त जुड़वाँ शब्दों को भी शब्दकोशों में जगह मिले I न न, हम इतने बेईमान नहीं हैं I हम ‘वामपंथी धनपशु,’ ‘बिकाऊ चैनल’, ‘सेकुलर दोगले’ ‘अर्बन जेहादी’ और ‘सेलेक्टिव पत्रकारिता’ जैसे जुड़वाँ शब्दों को भी शब्दकोशों में स्थान दिलाने का प्रयास कर रहे हैं I आशा है, शीघ्र ये पवित्र शब्द शब्दकोशों का गौरव बढ़ाएंगे I

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें : 1.अरुणाचल का लोकजीवन (2003)-समीक्षा प्रकाशन, मुजफ्फरपुर 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य(2009)–राधा पब्लिकेशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 3.हिंदी सेवी संस्था कोश (2009)–स्वयं लेखक द्वारा प्रकाशित 4.राजभाषा विमर्श (2009)–नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय (2010)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा, विश्वभाषा (सं.2013)-नमन प्रकाशन, 4231/1, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत (2018, दूसरा संस्करण 2021)–हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति (2021)-हिंदी बुक सेंटर, 4/5–बी, आसफ अली रोड, नई दिल्ली–110002 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति (2021)–मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ (2021)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली – 110002 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली– 110002 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम (2020)-मित्तल पब्लिकेशन, 4594/9, दरियागंज, नई दिल्ली–110002 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह-2020)–अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 17.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य(2021) अधिकरण प्रकाशन, दिल्ली 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य(2021)-मित्तल पब्लिकेशन, नई दिल्ली 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति(2021)-हंस प्रकाशन, नई दिल्ली मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]