कविता

दिलखुश जुगलबंदी- 25

आनंद के फूल खिलाना सीख लो

फासला रखें, सुरक्षित रहें
-लीला तिवानी

करीब आने की कोशिश तो मैं करूँ लेकिन,
हमारे बीच कोई फ़ासला दिखाई तो दे!
रविंदर सूदन

घर से बाहर जाने की आदत छोड़कर कुर्बानी दें,
कोरोना का खतरा मोल न लें.

दूर रह के करीब रहने की आदत है,
याद बन कर आँखों से बहने की आदत है,
करीब ना होते हुए भी करीब पाओगे,
मुझे एहसास बन के रहने की आदत है..

एहसास को एहसास ही रहने दो,
कोई कुछ भी कहता है, कहने दो,
पहले सुनते थे जी है तो जहान है,
अब तो कहते हैं जी है तो जहान भी है.

बस न चले तो क्या करूं बोलो!
कुछ तो मेरी बात भी रहने दो.

मन का दीपक जलाओ,
खुद भी रोशन रहो औरों को भी प्रकाश पहुंचाओ.

चलो चाँद का किरदार अपना लें हम दोस्तों,
दाग अपने पास रखें और रोशनी बाँट दें.

हौसला और घोंसला मत छोड़िए,
कुशलता से नाता जोड़िए,
कोरोना से नाता तोड़िए,

कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,
कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
रिश्ते तो मिलते हैं मुक़द्दर से,
बस उसे खूबसूरती से निभाना सीखो.

कोशिश करते रहो,
प्रेम के खजाने भरते रहो.

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि मुल्क की सूरत बदलनी चाहिए.

सोच बदलो सितारे बदल जाएंगे.

सोच बदलो सितारे बदल जाएंगे,
आस पास के नजारे बदल जाएंगे,
कल तक जो कांटे दिखते थे,
अब वही फूल बन जाएंगे.

कुर्बानी देनी है तो अपने अवगुणों की दो,
कोरोना भाग जाएगा.

शादी के लिए 36 गुण मिलाने पड़ते हैं,
लेकिन मित्रता में,
अगर कोई दो अवगुण (सिगरेट, शराब आदि) मिल गए,
तो कुछ घंटों में अटूट प्रेम हो जाता है.
-रविंदर सूदन

प्रेम देख लो या नेम देख लो,
अरे भाई आज का टेम देख लो,
कोरोना चल रहा है साबुन से बार-बार हाथ धोना सीख लो,
चेहरे पे मास्क लगाना और हाथों में ग्लोव्स पहनना सीख लो,
हाथ मिलाना छोड़कर पुराने जमाने की तरह,
नमस्ते करना सीख लो,
बाबा आदम के जमाने की तरह,
जूते घर से बाहर उतारना सीख लो,
साफ-सफाई का ख़ास ध्यान रखकर,
सामाजिक दूरी बनाना सीख लो,
दिल से दूर न रहना बहुत जरूरी है,
बस शारीरिक दूरी रखना सीख लो,
पौष्टिक भोजन खाओ और खिलाओ,
संतरे-नींबू-आंवला का प्रयोग कर विटामिन सी की मात्रा बढ़ाना सीख लो,
आनंद चाहते हो तो आनंद देना सीख लो,
ताली बजाकर खुश होना, हंसना-हंसाना सीख लो.
विदेशी भारतीय-संस्कृति की वाह-वाह करने लगे हैं,
तुम भी भारतीय-संस्कृति से प्रीत की रीत निभाना सीख लो,
जंक फ़ूड से मुख को मोड़कर, घर का भोजन खाना सीख लो,
पिज्जा-ब्रैड को त्याग मौसमी फल और सब्जियां खाना प्यारो सीख लो,
खुश रहना है तो कोरोना के बहाने ही सही खुश रहना सीख लो,
जलसों-अनुष्ठानों में आस्था न रखकर फासला बनाना सीख लो,
बाहर की दुनिया बहुत देख ली, अब मन के भीतर झांकना सीख लो,
घर में रहकर परिवार से मेलजोल बढ़ाना सीख लो,
आनंद की बगिया तुम्हारे महकाए ही महकेगी,
आनंद के फूल खिलाना सीख लो.
-लीला तिवानी

रविंदर सूदन का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/

लीला तिवानी का ब्लॉग
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/

पुनश्च-
हमारे एक सम्माननीय पाठक-कामेंटेटर कृष्ण सिंगला ने एक प्रार्थना लिख भेजी है. आप लोग भी अपने भजन-प्रार्थना भेज सकते हैं, ताकि ब्लॉग भजन: आपके हमारे प्रकाशित किया जा सके.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “दिलखुश जुगलबंदी- 25

  • लीला तिवानी

    दिलखुश जुगलबंदी से भी दिलखुश जुगलबंदी पनपती है और दिल खुश करके एक नहीं अनेक संदेश भी दे जाती है. हमें भी कुछ नया सृजन करने की प्रेरणा देती है. यह एक सामूहिक प्रयास है, जो एकजुटता से काम करने का संदेश भी देती है. यही एकजुटता आज के कोरोना के समय की अत्यंत अनिवार्य आवश्यकता है. अच्छी सलाह मानें, अच्छे निर्देशों का पालन करें और आनंद के फूल खिलाना सीख लें. इसी में हम सबकी भलाई है.

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