ग़ज़ल
तितलियों को गुनगुनाना आ गया
फूलों को भी मुस्कुराना आ गया
देख कर तुमको मुझे ऐसे लगा
फिर बहारों का ज़माना आ गया
सरे-महफिल निगाहों के इशारे से
हाल-ए-दिल हमको सुनाना आ गया
छू लिया तुमने मुझे जो यक-ब-यक
हसरतों को सर उठाना आ गया
सजा के होंठों पे तबस्सुम मजलिसी
दर्द दुनिया से छुपाना आ गया
खुश वही है इस जहाँ में कि जिसे
बीती बातों को भुलाना आ गया
— भरत मल्होत्रा