कौन कहता है मैं विकलांग हूँ?
एक पैर नहीं है तो क्या
अपने पैरों पर तो खड़ा हूँ।
नहीं हूं किसी पर बोझ
करता हूँ पालन पोषण अपने परिवार का
नहीं है मुझे शिकायत किसी से
कौन कहता है मैं विकलांग हूँ?
दायां हाथ नहीं है तो क्या
बायें हाथ से कर सकता हूँ सब काम,
देखो उसके तो दोनों हाथ नहीं है
पर नहीं है किसी से कम
पैरों से तूलिका पकड़
कैनवस पर उकेर दिए हैं सुंदर चित्र,
चलाता है अपनी जीविका
नहीं मांगता है भीख।
अरे हाँ, तुम्हारी अाँखें होकर भी नहीं है
तुम नहीं देख सकते यह सुनहरी दुनिया,
तो क्या ? श्रवण शक्ति से करता हूं सारे काम
अंतर चक्षु सदैव रहते गतिमान
नहीं थी जब ब्रेल लिपि
तब सूरदास ने लिख दी थी कृष्णलीला।
हाँ! मैं सुन नहीं सकता
पर मेरी समस्त शक्ति नयनों में समा गई है।
मैं बोल नहीं सकता
लोग मुझे गूंगा कहते हैं
पर ऐसी कोई बात नहीं जो मैं कह नहीं सकता।
कौन कहता है मैं विकलांग हूँ?
अरे! तुम तो बोल नहीं सकते
सुन भी नहीं सकते,
तो क्या?
इन आँखों से देकर न जाने कितने ग्रंथ रच डाले।
कौन कहता है मैं विकलांग हूँ?
मैं अकर्मण्य नहीं हूँ
किसी पर बोझ नहीं हूँ,
तुम समस्त अंगों के होते हुए भी आलसी बन पड़े हो,
अपने भाग्य पर रोते हो
चींख पुकार करते हो,
धिक्कार है तुम्हें !
तुम बोझ हो धरती पर,
कौन कहता है मैं विकलांग हूँ?
मैं विकलांग नहीं दिव्यांग हूँ।
— निशा नंदिनी भारतीय