कविता

तन

मत कर तन का घमंड
ये तन तो नश्वर है
हंसखेल कर पूरी करले जीवन यात्रा
इस तन को एक दिन मिट्टी में मिल जाना है |

मत भटक दर-दर
मिलना और बिछुड़ना
सृष्टि का यही नियम है |

आत्मा सुखमय तो सारा जग सुखमय
सुख-दु:ख दिन रात का खेल
सुख बाहर नहीं,
छिपा बैठा है स्वयं के ही भीतर |

इच्छाओं को कर सीमित
तेरा रोम-रोम खिल जायेगा
जीवन पथ जगमग रोशन हो जायेगा |

मत मन को दूषित होने देना
बड़े भाग्य से मिला ये मानव तन
कर उपकार, सेवा इससे करना
मृत्यु निश्चित, मृत्यु से मत ड़रना |

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111