पाटलिपुत्र
मिथिलांचल में पाटलिपुत्र-सा, कुशध्वज की रज्जधानी थी ,
अवतार वैदेही माता जानकी, कि स्वयं शक्ति भवानी थी।
पुष्प पाटल की सुरभि में , चंपा भी एक सहेली थी ,
कि मैके – माँ की घर में , दम खेल मेल’से खेली थी ।
चम्पक वन में चमचम – सी , नगरी चम्पकपुरी बसी थी,
राज – दुलारे गगन – सितारे, चकमक’से रवि – शशि थी।
मंथन पर सागर को जहाँ , अमृत और विष देना पड़ा ,
नीलकंठी – कल्याणकर – शिव को,विषपान क्यों लेना पड़ा ?
चम्पकपुरी थी सौम्य – सुन्दर , हा-हा सत्य कैलाशपुरी थी ,
राजा – प्रजा के बीच समन्वय , समता न्याय – धुरी थी ।
हंसध्वज थे वीर राजा , पर धीर – गंभीर नहीं थे ,
श्रवण – शक्ति क्षीण उनकी , मंत्री वाक् – पटु सही थे।
रीति – प्रीति की बात समर में , रेणु ही अणु बनती है ,
धर्म के निर् महाप्राण में ही , उत्तम परम – अणु बनती है।