रोटी से लेकर काले-गोरे का भेद नहीं !
‘मेरे देश की संसद, इसपर मौन है’ यह कविता सुप्रसिद्ध कवि स्व. सुदामा पांडे ‘धूमिल’ की है, यथा-
“एक आदमी रोटी बेलता है,
एक दूसरा आदमी रोटी खाता है,
एक तीसरा आदमी भी है–
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है…
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है…
मैं पूछता हूँ– यह तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद, इसपर मौन है ?”
कविता ‘वतन पे मरनेवालों का, यही बाकी निशाँ होगा’ के कवि स्व. जगदम्बा प्रसाद मिश्र हितैषी ने लिखा है-
“कभी वह दिन भी आएगा, जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी जमीं होगी, अपना आसमाँ होगा,
शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मरनेवालों का, यही बाकी निशाँ होगा !”
कविता ‘जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला, उस-उस राही को धन्यवाद’ के कवि स्व. शिवमंगल सिंह सुमन जी ने लिखा है-
“जो साथ न मेरा दे पाए, उनसे कब हुई सूनी डगर ?
जीवन अस्थिर अनजाने ही, हो जाता पथ पर मेल कहीं
पथ के पहचाने छूट गए, पर साथ-साथ चल रही याद
जिस-जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस-उस राही को धन्यवाद।”
कविता ‘कि मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ’ में स्व. गोपालदास नीरज जी ने स्पष्ट लिखा है-
“फूलों से जग आसान नहीं होता,
रुकने से पग गतिवान नहीं होता,
अवरोध नहीं, तो संभव नहीं प्रगति भी,
है नाश, जहाँ निर्मम होता है,
कि मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ,
तुम मत मेरी मंज़िल आसान करो !”
‘सच्चा देशभक्त वही है’, जो कवि स्व. धूमिल की कविता है, इसे देखिये-
“हर भूखा आदमी के पास खाली थाली है,
जो अपने-आप में भद्दी गाली है;
उनके एकतरफ कुँआ, दूसरी तरफ खाई है,
कहते हैं पिता, यही तुम्हारा भाई है;
लोहे का शरीर लिए, जिगर इस्पात का है,
बात-बेबात देश के लिए मिटनेवाला,
सच्चा देशभक्त वही है।”
‘भारत का रहनेवाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ’ कविता के कवि व गीतकार स्व. इंदीवर जी ने अच्छा ही लिखा है-
“काले-गोरे का भेद नहीं,
हर दिल से हमारा नाता है;
कुछ और न आता हमको,
हमें प्यार निभाना आता है।
जिसे मान चुकी सारी दुनिया,
मैं बात वही दुहराता हूँ;
भारत का रहनेवाला हूँ,
भारत की बात सुनाता हूँ।”