सैनिक
गलवान धरा पर शत्रु चढ़ा,
तब क्रोधित सैनिक द्वार अड़ा
विकराल विराट स्वरूप धरा
रिपु सम्मुख है यमदूत खड़ा
पद वक्ष रखा कर बाँध लिया,
पटका उसको मुख मुष्टि जड़ा
धर हस्त ध्वजा जयघोष किया,
सुन गर्जन भूमि अराति पड़ा
वह पर्वत गह्वर में चलता,
चुपके छिपके अति कष्ट सहे।
पितु मातु सहोदर से न मिला,
वन बीहड़ में मदमस्त रहे।।
जब लोहित देह हुई रण में,
मुख से जय भारत घोष कहे।
ध्वज को फहरा गिरि शृंग रखे,
तब प्राण तजे यह देह ढहे।।
अनंत पुरोहित ‘अनंत’