लघुकथा

आजादी

आज उसका मरीज तोता उड़ने के काबिल हो गया था. उसे उड़ते देखकर रमोला को लगा, वह खुद उड़ने लगी है.

सचमुच वह उड़ने ही तो लगी थी! टी.व्ही में जो भी चैनल खोलती, उसके नाम के चर्चे. जिस अखबार को पलटती, कंधे पर तोते के साथ उसकी तस्वीर!

शुक्र है कि वह वेटनरी डॉक्टर बन सकी और इतना अद्भुत काम कर सकी. उसे पिछले पांच दिनों की सारी बातें याद आ रही थीं.

”इतने प्यारे-से तोते के इतने प्यारे-प्यारे पंख कैसे कट गए?” उसने अपनी सहेली के पालतू परकटे तोते को देखकर पूछा.

”इसके पंख तो हमने ही काट दिए थे.” सहेली की बात में कहीं भी अफसोस नहीं झलक रहा था, अलबत्ता गर्व की बू अवश्य आ रही थी.

”मगर क्यों?”

”तुझे पता नहीं है, ये पंछी किसी के सगे नहीं होते! मौका मिलते ही उड़ जाने में देर नहीं लगाते.”

”तो क्या हुआ! आजादी तो सबको प्यारी होती है न!”

”तो इसे उड़ जाने दें?”

”पंछी उड़ते हुए ही अच्छे लगते हैं.” रमोला की आंखों में चमक दिखाई दे रही थी- ”यह तोता मुझे दे सकती है?” रमोला नहीं, वेटनरी डॉक्टर ने निहोरा किया.

”तू ले जा.” सहेली ने उसे तोते का पिंजरा पकड़ाने लगी.

”पिजरे का क्या करूंगी! पंख तो बिचारे के वैसे ही कतरे हुए हैं.” रमोला तोते को थामे चल दी. ”आजादी की कीमत वह क्या जाने, जो मुख में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुई थी. आजादी क्या होती है, मुझसे पूछो. वेटनरी डॉक्टर बनने के लिए कितने साल घर-घर गुलामी करती रही!” रमोला मानो खुद से बात कर रही थी.

”खुद मझधार में होकर भी जो औरों का साहिल होता है,
ईश्वर ज़िम्मेदारी भी उसी को देता है, जो उसके काबिल होता है.”

यह सुविचार रमोला के लिए महज सुविचार नहीं, जीवन जीने की शैली बन चुका था. मैं भी तो मझधार में थी! अब मुझे ईश्वर ने मुझे नेक काम करने की काबिलियत दी है, ताकि कुछ करके दिखाऊं!” उसने तोते के पंख ट्रांसप्लांट करने की योजना बनाई.

पंखों के ट्रांसप्लांट में उसे कुछ ही घंटों का समय लगा. इसके लिए उसने दान में मिले तोते के पंख, ग्लू और टूथपिक्स का इस्तेमाल कर नए पंखों को तैयार किया. ट्रासप्लांट के बाद तोता एक घंटे तक आसमान में उड़ा और फिर सुरक्षित जमीन पर आकर रमोला के पास बैठ सका. रमोला ने उसके पंखों को सहलाकर प्यार किया.

आजादी के छूटते किनारे फिर जुड़ने लगे थे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “आजादी

  • लीला तिवानी

    हमें चाहिए आजादी
    कोरोना के कष्टमय इरादों से,
    व्यर्थ के दुःखदायी विवादों से,
    दुश्मन की नापाक चालों से,
    प्लास्टिक बैग से भरे नालों से.
    आजादी जो निर्बाध हो,
    विश्वास जिसमें अगाध हो,
    आनंद का अंबार हो,
    प्रेम-ही-प्रेम का श्रंगार हो.

  • लीला तिवानी

    हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
    पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
    कनक-तीलियों से टकराकर
    पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

    हम बहता जल पीनेवाले
    मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,
    कहीं भली है कटुक निबोरी
    कनक-कटोरी की मैदा से,

    स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
    अपनी गति, उड़ान सब भूले,
    बस सपनों में देख रहे हैं
    तरू की फुनगी पर के झूले।

    ऐसे थे अरमान कि उड़ते
    नील गगन की सीमा पाने,
    लाल किरण-सी चोंचखोल
    चुगते तारक-अनार के दाने।

    होती सीमाहीन क्षितिज से
    इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
    या तो क्षितिज मिलन बन जाता
    या तनती साँसों की डोरी।

    नीड़ न दो, चाहे टहनी का
    आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,
    लेकिन पंख दिए हैं, तो
    आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।
    -शिवमंगल सिंह सुमन

Comments are closed.