अपशकुन
अपशकुन
अरे निशान्त ,करन कोई गाड़ी निकालो राखी को प्रसव पीड़ा हो रही है | निशान्त कार निकालता है |कान्ता राखी को ले कर आती है तभी दादी की कड़क आवाज सुनाई देती है | बहू की नज़र उतारी कि नहीं ? नही अम्मा ! और चल दी ; ला ! मिर्चा राई ला हम खुद ही उतार लेंगे |राखी का दर्द बढ़ ता ही जा रहा था और यहाँ रीत रिवाज थे जो खत्म ही नहीं हो रहे थे| सुमन जा दो सिक्का ला कर भी भाभी के ऊपर से उतार ले बाद मे नदी में बहा देना |
माँ sssssssssss अब नहीं बचेंगे | दादी बस भी करो , रेखा की हालत बिगड़ रही है , निकलने दो | चुप रह ! जोरू का गुलाम सब बहूके अच्छे के लिये ही कर रहे हैं |
कार आगे बढती उससे पहले काली बिल्ली कार के आगे से निकल जाती है |दादी फिर बोल पड़ती है पल भर ठहर सुमन भाभी का पहले मुँह जुठलवा कर पानी पिला दे |
अस्पताल पहुँचते पहुँचते राखी का हाल बेहाल हो जाता है | डोक्टर पेशेन्ट की हालत देखनाराज होती है |
परीक्षण करने के बाद बताती है तीव्र दर्द सहते – सहते बच्चे की नब्ज बहुत धीमी पड़ गयी है फ़ौरन ओपरेशन करना पड़ेगा और हाँ बच्चे को कुछ भी हो सकता है |
कान्ता सदमें में थी | निशान्त माथा ठोकते हुए माँ !आप सब के शुभ – अशुभ के सवालों का घेरा मेरे बच्चे और मेरी राखी के लिये भारी पड़ गया |
अब बस मौन था और आँख में आँसू
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”