घर किसी का जला नहीं होता
घर किसी का जला नहीं होता
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नफरतों का समा नहीं होता |
घर किसी का जला नहीं होता |
प्यार को लोग अगर अपनाते-
दर्द दिल का बढा नही होता |
आदमी खुद को गर समझ लेता –
फिर किसी से गिला नहीं होता |
रंग धरती पे उतर आते सब –
खोखला दायरा नहीं होता |
प्रीत की रीत गर निभा देते –
दरमियाँ फासला नहीं होता |
जिनके उन्वान बदलते रहते –
मंजिलों का पता नहीं होता |
जो खुदी को खुदा समझ बैठा –
उसका अपना कोई नहीं होता |
वक्त चलता सदा अकेला है –
साथ में कारवां नहीं होता |
फल्सफा ज़िंदगी निराला है –
जिसमें कल का पता नहीं होता |
सर्द रातों में ठिठुर ही जाते-
पास गर हौसला नहीं होता |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”