गीतिका/ग़ज़ल

घर किसी का जला नहीं होता

घर किसी का जला नहीं होता
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नफरतों का समा नहीं होता |
घर किसी का जला नहीं होता |

प्यार को लोग अगर अपनाते-
दर्द दिल का बढा नही होता |

आदमी खुद को गर समझ लेता –
फिर किसी से गिला नहीं होता |

रंग धरती पे उतर आते सब –
खोखला दायरा नहीं होता |

प्रीत की रीत गर निभा देते –
दरमियाँ फासला नहीं होता |

जिनके उन्वान बदलते रहते –
मंजिलों का पता नहीं होता |

जो खुदी को खुदा समझ बैठा –
उसका अपना कोई नहीं होता |

वक्त चलता सदा अकेला है –
साथ में कारवां नहीं होता |

फल्सफा ज़िंदगी निराला है –
जिसमें कल का पता नहीं होता |

सर्द रातों में ठिठुर ही जाते-
पास गर हौसला नहीं होता |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016