गीतिका/ग़ज़ल

हादसे हो गए

हादसे हो गए
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दर्मियां जब घने फासले हो गये |
हाय तन्हा मेरे काफिले हो गये |

ज़िंदगी के सभी रास्ते खो गये-
ख्वाब देखे थे जो अनमने हो गये |

इक जमाना था जब हर तरफ़ प्यार था-
क्यों जुदा प्यार के रास्ते हो ग ये |

याद आते हैं लम्हात गुज़रे हुये-
वो जो अपने थे क्यों दूसरे हो गये |

साथ चलने का वादा किया था कभी-
क्या हुआ क्यूं ये शिकवे गिले हो गये|

झूठ लगने लगे हैं ज़मी आसमां –
जिन्दगी में बडे जलजले हो गये |

बात तब और थी बात अब और है –
बात ही बात में हादसे हो गये |
मंजूषा श्रीवास्तव”मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016