प्रखरतम वक्ता
आमने-सामने 27 बार सुना है मैंने, भारत के दूसरा विक्रमादित्य अटल बिहारी वाजपेयी को । मंदिर से आती शंख-ध्वनि, मस्ज़िद से आ रही अज़ान, गुरद्वारे के घंटे और गिरजे से आती ‘हैप्पी क्रिसमस डे’ की अतल ध्वनि-प्रतिध्वनियों के बीच ‘अटल’ का जन्म होना नए युगयात्रा में नींव पड़ना कहा जाएगा। वर्ष 1989 में जब वे प्रधानमन्त्री नहीं बने थे, संभवत: तब लोकसभा में वे प्रतिपक्ष के नेता होंगे, लाउडस्पीकर में उनके देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषण सुन मैं बौराया करता था, तबतक दैनिक ‘आज’ में ‘बालकवि गोष्ठी’ का मेरे द्वारा प्रेषित समाचार छप चुका था और साहित्यिक पत्रिका ‘भागीरथी’ ने मेरी देशभक्ति कविता ‘तुम पक्के हिन्दुस्तानी’ छाप चुका था और मेरे अंदर अपना ‘पत्र’ निकालने का हिलोरे मारने लगा था, इसी बीच मैं जयपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘आमख्याल’ के संपर्क में आया था। भारतरत्न अटल जी : मेरी यादों में ! भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ एक पत्रिका में मेरी भी कविता प्रकाशित हुई, तब अटल जी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता थे। हिंदी पत्रिका ‘भागीरथी’ (सितम्बर+अक्टूबर 1992) में उनकी कविता (मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना / पृष्ठ-8) और मेरी कविता (जननी की पुकार / पृष्ठ-39) भी प्रकाशित हुई थी। यहां कटिहार में पाठक सर, ज़ख़्मी सर, सरस जी, प्रदीप दूबे जी, देवेश जी इत्यादि के बीच भी विशुद्ध हिंदी के अखंड-जाप व महान नाम ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ के ‘भाषण’ को लिए ‘सिक्का-छाप’ जमाए हुए था।