एलजीबीटी भी एक जीवन है… हम कितने नैतिक और चारित्रिक रूप से स्वस्थ हैं, जो दूसरों के ‘आचरण प्रमाण-पत्र’ बांटेंगे ! अगर हम ध्यान से सोचेंगे, तो हर व्यक्ति एलजीबीटी हैं । अगर दैहिक ताप 99.99% सही है, तो हर कुँवारा-कुँवारी एलजीबीटी है । विधवा, विधुर, तलाकशुदा भी एलजीबीटी हैं। किसी के पति अगर एक दिन के लिए भी उनके पास नहीं है, तो पत्नी एलजीबीटी हो जाती हैं।
उसी तरह पत्नी कहीं और जगह है, तो पति एलजीबीटी हो जाते हैं!
ऑफिस में महिलाओं के द्वारा गैर-पुरुष कर्मियों के साथ ठहाके लगाना, फिर कार्यालय में पुरुष सहकर्मियों के द्वारा गैर-महिला से वार्त्तालाप करना तक एलजीबीटी है। अगर इससे बचना है, तो अपने घर पर ही कैद रहिये और घरेलू यौन हिंसा का शिकार होइए ! हमारे किन्नर बन्धुओं के दैहिक ताप संभाले हाड़-मांस का देह अभिशप्त जीवन लिए जहाँ उनके लिए माननीय उच्चतम न्यायालय का फैसला शिरोधार्य है।
…. तो कोई राजा की कई हजार पटरानियों अथवा किसी महारानी के कई-कई पतियों को लेकर नैतिकता की बात क्यों नहीं करते हैं?
हम अगर हाड़-मांस के देहधारक हैं और उनमें वीर्य-रजवृत्ति भी शामिल है, तो सहमति से कोई बालिग कहाँ और किनके साथ सोता है, इसे लेकर किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए !
धारा 377 कहता है कि जिस सेक्स में उत्पत्ति ना हो वह सेक्स अप्राकृतिक है, फिर तो मा. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि किसी को यह ऐतराज़ नहीं होना चाहिए कि दो बालिग अगर आपस में राजी-खुशी हो, तो किसी को काहे को गुरेज़ !