गीत/नवगीतपद्य साहित्य

क्यों खोजे महल दुमहले

क्यों खोजे महल दुमहले तू,
क्या जाने कब तक डेरा है।
इस आनी जानी दुनिया में,
है जितना भी बहुतेरा है।

चहुँ ओर लिए पिंजरे पिंजरे,
सैयाद फिरे बिखरे बिखरे,
पंखों में भर विश्वास तू उड़,
ये नील गगन बहुतेरा है।

कोई क्यों साथ भला देगा,
जितना देगा दुगना लेगा,
क्यों जोहे बाट तू औरों की,
मन मस्त मगन बहुतेरा है।

सूखे फूलों का गम न कर,
कल आएगा खुशबू ले कर,
दामन अपना लहराए जा,
यहाँ इत्र-ए-चमन बहुतेरा है।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा