ग़ज़ल-1
कितना तरसी कितना तड़पी , तेरे इंतज़ार में।
उजड़ी – उजड़ी रहती थी सनम ,भरी बहार में।।
था यकीन दिल को ,एक दिन आओगे पास तुम।
ख़ुद से ज़्यादा था भरोसा , मुझको मेरे प्यार में।।
दूर मत जाना कभी तू , मुझसे अब मेरे सनम।
जां निकल जाएगी, मेरी दिल – ए – बेक़रार में।।
नाम तेरे कर चुकी हूँ , अपनी सारी ज़िन्दगी।
संग – संग चलते चल सनम , समय की धार में।।
रात – दिन ख़ुदा से माँगती हूँ इतनी सी दुआ।
दिल में आपके रहूँ , डूबी रहूँ मैं प्यार में।।
रूठ जाना मान जाना, है निशानी प्यार की।
आशिया बना रहे सदा ही , दिल के द्वार में।।
हार कर के दिल, तुझे मैं जीत ही गई सनम।
फायदा है अंजु ,जीत से जियादा हार में।।
— अंजु दास गीतांजलि