गीत “नारी की तो कथा यही है”
अपने छोटे से जीवन में
कितने सपने देखे मन में
—
इठलाना-बलखाना सीखा
हँसना और हँसाना सीखा
सखियों के संग झूला-झूला
मैंने इस प्यारे मधुबन में
कितने सपने देखे मन में
—
भाँति-भाँति के सुमन खिले थे
आपस में सब हिले-मिले थे
प्यार-दुलार दिया था सबने
बचपन बीता इस गुलशन में
कितने सपने देखे मन में
—
एक समय ऐसा भी आया
जब मेरा यौवन गदराया
विदा किया बाबुल ने मुझको
भेज दिया अनजाने वन में
कितने सपने देखे मन में
—
मिला मुझे अब नया बसेरा
नयी शाम थी नया सवेरा
सारे नये-नये अनुभव थे
अनजाने से इस आँगन में
कितने सपने देखे मन में
—
कुछ दिन बाद चमन फिर महका
बिटिया आयी, जीवन चहका चहका
लेकिन करनी पड़ी विदाई
भेज दिया नूतन उपवन में
कितने सपने देखे मन में
—
नारी की तो कथा यही है
आदि काल से प्रथा रही है
पली कहीं तो, फली कहीं है
दुनिया के उन्मुक्त गगन में
कितने सपने देखे मन में
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’