गीतिका/ग़ज़ल

झुमका

नारी का श्रंगार है झुमका,
गरिमा का तो सार है झुमका।

नारी की शोभा झुमके से,
आकर्षण,उजियार है झुमका।

मेले,उत्सव और पर्व पर,
दमके,वह संसार है झुमका।

नारी को सम्मान दिलाता,
जय-जय-जयकार है झुमका।

पति,प्रेमी सबको भाता है,
मोहक-सा व्यवहार है झुमका।

दुल्हन पी के देश है जाती,
लज्जा है,अभिसार है झुमका।

खो जाये तो ढूंढो कहती,
साजन जी का प्यार है झुमका।

आँच आन पर आ जाए तो,
तेज एक तलवार है झुमका।

राज़ छिपाये हरदम अनगिन,
नारी को उपहार है झुमका।

गिरा अगर जो बीच बजरिया,
प्यार और तक़रार है झुमका।

जन्म-जन्म का बंधन जिसमें,
वह नेहिल अधिकार है झुमका।

“शरद” मोल न देखा जाता,
पूरा इक संसार है झुमका।

— प्रो. (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]