पी. एल. एस. एन. जी. एच. एस. एस., मनिहारी – परिवार
नव प्रतिपल सूर – नर; कि पल – पल सईदुर सर।
धीर – वीरांगना अंजन श्री; लिए पूज्या अंजना कुमारी।
अभय मधु लिए भाई विजय; कि नववर्ष की जय – जय।
वृहद कर्म अनुशासित ईला; है नव – संचरण की सुशीला।
एक अन्वेषण सबों की खोज; प्रेम में विचरते हैं मनोज।
कि तभी घड़ी अनथक किए टिक – टिक; मधुर जी आस्तिक।
नहीं भेद नेक – चलन लेश; है वो प्यार की लालिमा राजेश।
है कृष्ण, खुदा या राम – रहीम; सबमें करते अट्टहास भीम।
राजनीतिक विज्ञान है, पर इसमें खामोश; अहा! कश्यप आशुतोष।
उषाकाल प्रांतर दिवाकर है; विलोमित सुधांशु सुधाकर है।
वो विज्ञान के अज़ीब ख्वाब; जीयो मोरे ओ’ तौवाब।
गणित विधा के आशुतोष; है बड़ भोला, है संतोष।
रिज़वान की रही आशिक़ी; रही बीती साल भी फ़ीकी – फ़ीकी।
निशा में वो रहस्यमयी चश्मि; नित्य स्व – आलोकित रश्मि।
कि प्रेम – पकोड़ी लिए चले भिंड; गंभीर – उतावले हैं अरविंद।
नमो नमामि लिए हर क्षण बँधी; लिए प्रतिपल सिद्ध सिद्धि।
हर – सोल में जगायी उत्सुकता; सतत कर्त्तव्यासीन सरिता।
धिक जीवन अंदरतम संघर्षता; साफ मन की है श्वेता।
ओ’ अपना शाहजादा सलीम; कर चले हम फिदाए हलीम।
हाँ, स्नेह लिए कुलकर्णी नेहा; कि खूब शुभ – शुभ कहा।
अंत सुखद कि सबको देकर आशीष; है सिंह, पर गंभीर नफ़ीस।
नववर्ष, मकर संक्रांति, गणतंत्र-आनंद; कि कह रहा पाल सदानंद!