सृष्टि
बदलता मौसम देता संदेश
प्रकृति बदलती अपना परिवेश
क्यों करते हो तुम खेद ?
न जानो तुम सृष्टि का भेद
सुख-दुख, धूप-छाया
सृष्टि की है यह माया
रह जाएगी यहीं काया
रुप यह सब को भाया
अनादि है यह सृष्टि
अनंत है यह सृष्टि
लेती है जब अंगराई सृष्टि
तहस-नहस कर देती सृष्टि
सृष्टि से न करो तुम छेड़छाड़
नहीं तो देना होगा तुम्हें इम्तिहान
मिटा देगी सबका नामो निशान
बनो तुम एक नेक इन्सान. . . .
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन