कविता

सृष्टि

बदलता मौसम देता संदेश
प्रकृति बदलती अपना परिवेश
क्यों करते हो तुम खेद  ?
न जानो तुम सृष्टि का भेद

सुख-दुख, धूप-छाया
सृष्टि की है यह माया
रह जाएगी यहीं काया
रुप यह सब को भाया

अनादि है यह सृष्टि
अनंत है यह सृष्टि
लेती है जब अंगराई सृष्टि
तहस-नहस कर देती सृष्टि

सृष्टि से न करो तुम छेड़छाड़
नहीं तो देना होगा तुम्हें इम्तिहान
मिटा देगी सबका नामो निशान
बनो तुम एक नेक इन्सान. . . .

— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333