एक जगहवाली सड़ांध
तालाब का पानी
एकजगह रहने से
उनमें सड़ांध आने लगती है,
लेकिन तालाब को अगर
किसी नदी के साथ
जोड़ दिया जाय
तो तालाब
जीवंत हो जाता है ।
सत्ता भी अगर
एक में केंद्रित हो जाय
तो सच है,
वो सत्तासीन
‘तानाशाह’ हो जाता है,
किन्तु उस सत्ता को
एक गति (विकास) मिल जाय,
तो सत्ता जनोपयोगी
और विकासोन्मुखी
हो जाती है ।
एक प्रजा को सत्ता से
और क्या चाहिए ?
भारतीय राजनीति का
प्रयोगशाला है बिहार,
जहाँ जातिवाद ने
अरसे पहले उसे
खोखला कर दिया था,
किन्तु विकास आकर
‘जाति-संतप्तता’ को
न केवल दूर फेंके,
अपितु प्रजाओं के
मुख पर
मुस्कान भी बिखेरे !