प्रिय प्रेम ! तुम महान हो
तुम अमर हो , तुम ओजस्वी हो
तुम सदियों पुराना विश्वास हो
तुम दीपक हो , जो कालो से
जलता आ रहा है
तुम पूजा हो , तुम तपस्या हो
तुम मधुर एहसास हो
तुम जानवर को इंसान ,
इंसान को देवता ,
देवता को ब्रह्मा विष्णु महेश
बना सकते हो।
तुम खुद तो महान हो,
औरों को भी महान
बना सकते हो ।
अगर जरूरत है तो सिर्फ डूबने की ,
जितना डूब सकते हो ।
उतना डुबो ,अपने अंदर खोजो ।
अपने आपको टटोलो ,
जो खजाना तुम्हारे अंदर
समाया हुआ है।
मेरे अंदर समाया हुआ है
हम सब के अंदर समाया हुआ है ,
उसे बाहर निकालो ।
इस हाड – मास के शरीर में से
कुछ खोजो , अपने आप को पहचानो ,
तुम कमजोर नहीं हो,
तुम छोटे भी नहीं हो,
अपने को तुच्छ मत समझो।
तुम तीनो लोको के स्वामी हो
तुम इंसान हो ,
इंसान जो प्यार के लिए
मिट गया ,मिट रहा है
जिसने प्यार को जाना है
उसने अपने अस्तित्व को पहचाना है।
प्यार सौदा नहीं ,
प्यार समझौता भी नहीं
प्यार तो सिर्फ समर्पण है ।
त्याग है , बलिदान है
एक दूसरे के प्रति
पूर्ण रूप से निस्वार्थ मन से
समर्पित ,
हो जाना ही प्यार है ।
प्यार है तो संघर्ष है
क्योंकि प्यार सुकून नहीं
प्यार बेकरारी है
प्यार वासना नहीं
प्यार तो दो आत्माओं का मिलन है
जो सदियों से ,
कालो से विश्वास पर टिका हुआ है।
प्यार झुकता नहीं ,
प्यार तो उठना है ।
प्यार इंसान को
हर पल , हर लम्हा
एक शक्ति देता है
ऊर्जा देता है
जिसका एहसास वह सदा
अपने अंदर करता है ।
प्रिय प्रेम, तुम महान हो
— कमल राठौर साहिल