मैं मंदिर नहीं जाता, में मस्ज़िद नही जाता ना में पाँच पहर की नमाज पढ़ता हूं ना मंदिर की घण्टियाँ बजाता हु ऐसा नहीं कि मेरी भगवान में आस्था नहीं है या मेरा मोला से नाता नही है ऐसा भी नहीं कि मैं नास्तिक हूं ऐसा भी नही में काफ़िर बंदा हु। मैं जाता हूं […]
Author: कमल राठौर साहिल
अंतिम दिन
सुबह उठो तो मुस्कुरा कर उठो सूरज जैसी ऊर्जा के साथ उठो खिलते फूल जैसे उठो बहती नदियों की अटखेलियाँ जैसी मोज़ की तरह उठो परिंदों की उम्मीदों जैसे उठो ओर उस दिन को जी भर कर जियो सारा रस निचोड़ कर उस दिन का आनन्द लो उसी दिन को अंतिम दिन समझ कर उल्लास […]
वो परिंदे
वो परिंदे जो गांव की मिट्टी की खुशबू को छोड़ गांव की आबो हवा को छोड़ शहर की तरफ उड़ गए थे सपनों के शहर में अपने सपनों को साकार करने अपनों से दूर , दो जून की रोटी और सपनों का बोझ ढोते जिये जा रहे थे। वो पर कटे परिंदे , अब वापस […]
मैं इंसान खोज रहा हूं
विचलित हू में , विचलित हू। देख देख इंसानों की फितरत सोच सोच में विचलित हू। इंसानों में इंसान ना पाकर विचलित हू में , विचलित हू। रोम में एक दार्शनिक हुआ करता था जिसका नाम सुकरात था। वह रोम की गलियों में दिन के उजाले में लालटेन लेकर हमेशा कुछ ना कुछ खोजता रहता […]
उठो राम के वंशज
उठो राम के वंशज, तुमको देश पुकार रहा । जयचंदो की संतानों से थर थर देश कांप रहा। कल्कि का अवतार धर युगपुरुष तुमको पुकार रहा। एक अकेला मोदी, शेर की तरह दहाड़ रहा। महापुरुषों के बलिदानो का कुछ तो अभिमान करो । वीर शहीदों के खून का ना तुम अपमान करो । उठो राम […]
बुजुर्ग
पुराने नीम से होते हैं बुजुर्ग तपती गर्मी में ठंडी छाव तासीर में नीम हकीम घर की नींव होते हैं बुजुर्ग। पुरानी किताबों से होते है बुजुर्ग अपने अंदर वेद पुराण समेटे कभी गीता का ज्ञान तो कभी महा काव्य होते है बुजुर्ग हमारे आने वाला कल गुजरा हुआ बचपन होते हैं बुजुर्ग वह अथाह […]
शिलालेख
मैं वह शिलालेख हूं जिसे थोड़ा-थोड़ा हर कोई तोड़ता है। वो मुझको तोड़कर बिखेर देना चाहते है। वो मुझे जर्रा जर्रा कर मरुभूमि में मिला देना चाहते हैं। वो सवाल उठाते हैं । मेरे वजूद , मेरे अस्तित्व पर वह बर्दाश्त नहीं कर पाते मेरे गगन चूमते प्रतिबिंब को वह अनगिनत प्रहार करते हैं। मुझको […]
यारों की टोली
फागुन का उत्सव यारो की टोली निकल पड़ी अलसुबह धमाल करने गैंडा, लप्पा , फुटिया चंदू , ओर खाटिया यारों की टोली होली के रंग में रंगने भांग और जाम के सुरूर में चढ़ने निकल पड़ी यारों की टोली होली के सुरूर में कोई खुद को रंग लगाता तो कोई किसी को रंग गुलाल से […]
बेड़ियों में नारी कब तक ?
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो , विश्वास रजत नग पग तल में , पीयूष स्रोत सी बहा करो , जीवन के सुंदर समतल में ” जयशंकर प्रसाद की यह पंक्तियां जिसमें नारी को सम्मान के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित किया है । मगर क्या सच में यथार्थ पर नारी का वह […]
मोक्ष
जन्म – मृत्यु के फेर में, गंगा घाट पे मोक्ष को तरसते वो सन्यासी जो , अनसुलझे जीवन को त्याग मोक्ष प्राप्ति के लिए निकल पड़े , उम्मीदों का झोला टांके, ललाट पर चंदन लगा , नाम मात्र के वस्त्र धारण कर हर हर गंगे का उद्घोष , कतार में लगे हुए मोक्ष पाने को […]