कविता

किसान

ईश्वर का दूजा रुप, प्रकृति का है  सहचर,
 सूरज, माटी, जल पर आधारित है भूमिहर।
    जन-जन  को करता, ऊर्जा से सिंचित,
   अल्पता पूर्ण खीसें, रहता ऊर्जा से वंचित।
 खाली पेट काम करें ,क्षुधा साथ जो सोता,
 कर्ज में आत्मदाह करें, दयनीय हुआ अन्नदाता,
          आस की माटी पर ,करें क्षुधा बीज का रोपण,
         मेघ ना बरसे तो हलधर,अश्रु जल से करें पोषण।
 किसान अस्तित्व को देखा गया सदा ही हेय,
  देता है देश उसको आर्थिक प्रगति का श्रेया।
        बिन आंदोलन के सरकार, लाऐ योजना आकर्षक,
       अर्थ लाभ और शिक्षा से, खुशहाल हो परिवार कृषक।
 जब होगा गरीबी रेखा से ऊपर किसान ,
 तभी संभव है, हमारे समाज का उत्थान।
वृषभ बल समाहित पग में, कुदाल बनाम हाथ हैं,
 देश के भूमिपुत्र को, नतमस्तक प्रणाम है।
— सोनिका कुलश्रेष्ठ

सोनिका कुलश्रेष्ठ

कृभको नगर शहर शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) उपलब्धि साहित्य उत्थान हिंदी, काव्य कोश समूह द्वारा आयोजित काव्य लेखन प्रतियोगिता में प्राप्त सम्मान पत्र। 🌸 कई काव्य संग्रह में प्रकाशित काव्य रचना । 🌸समाचार पत्र अन्य मासिक पत्रिकाओं में प्रकाशित कई लेख( सामाजिक मुद्दे) 🌸 साहित्य दर्शन वेबसाइट पर उपलब्ध काव्य रचना । 🌸रेडियो चैनल पर मौलिक कार्यक्रम का प्रसारण (मेरे द्वारा) 🌸ऑनलाइन कवि सम्मेलन का संचालन (मेरे द्वारा)