अब वसंत भी चला गया
होकर बुलंद जमीं पर,
कहते हैं हमने
मकां बना लिया !
खुद हम ही हैं मिट्टी के,
औ’ मुमताज भी
मिट्टी में दफन हो गई ।
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भय सदैव
बरकरार रहे,
तभी सत्ता
कायम रह सकती है !
ईश्वर का भय,
सरकार का भय
या मौत का भय…
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बड़े अरमानों से
मैंने भी एक वक़त,
खूब लगाई थी
क्रीम ‘फ़ेयर & लवली’,
किन्तु न तो मैं
‘फेयर’ हो सका,
और न ही अबतक
मिल पाई ‘लवली’ !
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आपको चेहरे से भी
बीमार होना चाहिए,
इश्क़ है तो इश्क़ का
इज़हार होना चाहिए।
आओ मुनव्वर राना,
भाग जाओ कोरोना !
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कल ‘कोरोना’ के डर से
भारत में
एकता देखी जा रही
और सभी ‘दल’ भी
एक हो गए;
ताली, थाली
और घण्टी ने
ईश्वर, अल्लाह,
गॉड को भी
एक कर दिए !
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आपको चेहरे से भी
बीमार होना चाहिए,
इश्क़ है तो इश्क़ का
इज़हार होना चाहिए।
मुनव्वर राना
यही कहिन।
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ऐरे-गैरे लोग भी
पढ़ने लगे हैं इन दिनों,
आपको औरत नहीं,
अखबार होना चाहिए।
मुनव्वर राना कहिन।
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लो, यह बसंत भी
चला गया !
और अपनी बसंती भी
भेंट हुई नहीं !