मतदान
दान की परम्परा का
एक बार फिर
निर्वहन करते हैं,
आइए! साथ चलकर
मतदान करते हैं।
मतदान हमारा
लोकतांत्रिक अधिकार है,
परंतु देश के नागरिक हैं
इसलिए कर्तव्य भी।
बस यही याद रखिए
कर्तव्य की बलिबेदी पर
खुद को न बेंचिए,
राष्ट्र, समाज और खुद के लिए
मत दान से पहले
खूब सोचिए, बिचारिए,
किसी के बहकावे में
कभी न आइए।
खुद ही फैसला कीजिए
सही क्या है?
अपना ही नहीं राष्ट्र का भविष्य
जिन्हें सौंप रहे हैं,
उनके बारे में भी तनिक
विचार कर लीजिये
फिर मतदान कीजिए।
क्योंकि तब
पाँच साल
सिर्फ़ पछताना न पड़ेगा,
सब ओर खुशियों का
परचम जो फहरेगा ।
— सुधीर श्रीवास्तव