‘हटाओ’ संस्कृति !
भारत में सर्वोपरि संविधान है । निर्वाचन आयोग संवैधानिक संस्था है, भले ही उनकी स्वायत्तता है, बावजूद वे नियमों से बंधे है ! नियमों में संशोधन संसद करते हैं !
संसद की बैठक आहूत करना भारत सरकार के कार्यान्तर्गत है । निर्वाचन आयोग द्वारा सरकार को कई बार लिखित याचना के बावजूद कि अपराधकारित दागी व्यक्ति को चुनाव में उम्मीदवार बनने नहीं देने हैं, इसपर स्थिति जस की तस है ! आज गुरु को हटा रहे हो; कल आपके चेले आपको हटाएंगे !
गरीबी हटाओ, इंदिरा हटाओ, कांग्रेस हटाओ, लालू हटाओ, लाला हटाओ, बाला हटाओ, मोदी हटाओ….. यह तो हटाने का पारंपरिक उत्सव है ! जिन्हें जिनके विचार पसंद नहीं आये, उन्हें हटाओ ! शाह (जहाँ) को हटा औरंग (जेब) सत्तासीन हुए, मुलायम को हटा अखिलेश अध्यक्षासीन हुए, तो कांसीराम को हटाकर मायावती।
आडवाणी जी को अटलजी के अंदर डिप्टी भर रहने की कसक थी, तो अपने शिष्य मोदी जी से भी ! अमित शाह जी ने आडवाणी जी को हटाये ! कल जिसे आपने हटाया, वह आपके साथ पुनरावृत्ति कर रहा है। जब इस देश की 14 साल की सफल और सुफल सेवा ‘चरणपादुका’ (चप्पल व खड़ाऊँ) कर सकते हैं, तो किसी को भी कुर्सी की लालच क्यों ? सत्ता चिरस्थायी नहीं होती, जनाब ! सुकार्य और सद्कार्य चिरस्थायी होते हैं ।
अगर आपने ये दोनों सम्पादित किया है, तो आपके कृतित्व और व्यक्तित्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित होंगे, फिर इतर डरते क्यों हैं, आप! हाथी चले बाज़ार, कुत्ते भूँके हज़ार !