एक ओर जहाँ लोग बेहाल
भाग रहे यहाँ से वहाँ
लिए अपने परिजनों को
इलाज के लिए
एक हस्पताल से दूसरे हस्पताल
फिर भी मिल नहीं रहा दाखिला ,न दवा, न इलाज , न इंजेक्शन, न ऑक्सीजन
और यूँ दम तोड़ रहे लोग
हज़ारों
मरने पर भी नहीं इज़्ज़त से
हो रहा अंतिम संस्कार
वहां भी हो रही बेकदरी
कहीं मांगी जा रही ऊँचे दाम
करने को दाह संस्कार
इस तरह शर्मसार हो रही मानवता जो कर रही सौदा
जानों का कहीं कर कालाबाज़ारी दवा, इंजेक्शन की तो कहीं यूँ
लगा दाम लाशों का ।।
पर जहाँ शमर्सार कर रहे दानव रूपी ये मानव हैं
वहीं अपने घरों, मंदिरों, गुरुद्वारों से लोग कर रहे सेवा पहुँचा खाना मरीज़ो के परिजनों और कोरोना से ग्रस्त परिवारों को
वहीं कई लोग कर रहे सेवा ऑक्सिजन की दे साँसे ज़रूरत मंद मरीजों को
सत्संग घर हों या गुरुद्वारा परिसर बनाये जा रहे हैं वहां हस्पताल ताकि जाए न जान कोई बिना इलाज
ये मानवता की पराकाष्ठा है जहाँ लोग हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं देने को राहत इस आपदा में अपनी निस्वार्थ सेवा से
मानवता को जहां शर्मसार कर रहे दानव
वहीं भगवान बनकर भी मानवता कर रही उपचार।।
…..मीनाक्षी सुकुमारन