सुकून
दिनांक-०२/०६/२०२१.
विषय- स़ुकून
सुकून के लिए बड़ी की जद्दोजहद
पर वक्त तो फिसलता गया
सुकून पाने के लिए दर-दर भटकता रहा
पूरा आसमान तो मेरा था न
पैर भी जमीन पर था
सुकून की तलाश में
पर गुमशुदा सा था
24 घंटे भी थे कम
सुकून पाने के लिए
सह रहे थे सारे गम
एक सिरा पकड़ा तो
दूजा छूटता रहा बस सुकून की तलाश में
मारा मारा फिरता रहा
भौतिक सुख सुविधाओं को
मेहनत से तो जुटा लिया
सब कुछ पाने की चाहत में
सब कुछ ही लुटा दिया
जिसकी खातिर किया यह हासिल
अब तो नहीं मेंरे सुकून में शामिल
सुकून को पाने के लिए
सुकून ही लुटा दिया
हाय यह क्या किया
चंद सिक्कों के लिए
सीने में अंगार लिया
सुकून तो मिला नहीं
मैं तन्हा सा निढाल रहा।
स्वरचित
सविता सिंह मीरा
झारखंड जमशेदपुर