पापों की तू रचना काली
बाहर से ही नहीं, सखी तू, अन्दर से भी काली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।
छल-कपट, षड्यंत्र की देवी।
तू है, केवल धन की सेवी।
प्रेम का तू व्यापार है करती,
प्रेम नाम, प्राणों की लेवी।
धोखा देकर, जाल में फांसे, यमराज की साली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।
धन से खुश ना रह पायेगी।
लूट भले ले, पछताएगी।
नारी नहीं, नारीत्व नहीं है,
पत्नी कैसे बन पाएगी?
पत्नी प्रेम की पुतली होती, तू तो जहर की प्याली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।
साथ में सबके, कहे अकेली।
कपट के खेल कितने है खेली?
शाप किसी का नहीं लग सकता,
कैसे होगी? कालिमा मैली।
विश्वासघात कर, पत्नी कहती, लगे जंग की लाली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।
दुष्टता से, तू चाहे जीतना।
लूट रही तू, हमें रीतना।
दुरुपयोग कानूनों का करके,
कभी मिलेगा, तुझे मीत ना।
मोती सा फल चाह रही है, बंजर है, सूखी डाली है।
पापों की तू रचना काली, कभी न बने घरवाली है।।