ग़ज़ल
जागो देश पुकार रहा है।
तू क्यों हिम्मत हार रहा है।।
महाबली तू हनुमत जैसा,
मन ही मन सत मार रहा है।
कर ले याद अतीत हिन्द का,
सूर्योदय का द्वार रहा है।
तू अपना अस्तित्व बचा ले,
नित प्रति जग को तार रहा है।
नहीं भुजाओं में बल कम है,
दुश्मन को तू खार रहा है।
भोथी कर तलवार न अपनी,
हितकारी दो धार रहा है।
‘शुभम’उठ खड़ा हो कटि कस ले,
तू जगती का प्यार रहा है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’