लकीरें
“दसवीं पास कर ही चुकी है, अब इसका लग्न कर दे। ज्यादा कागज़ काले करने से कुछ नहीं होगा।” सास समझाते हुए बोली।
“हम तो कहते हैं जीजी, भाग्य बदल जाएगा बिटिया का। लड़का सरकारी दफ्तर में चपरासी है।” ननद समझाते हुए बोली।
पर जाने क्या जनून था रमिया को, हाथ पैसा न होते हुए भी अपनी बेटी को आगे पढ़ा- लिखा, कुछ काबिल बनाना चाहती थी।
और आज छह साल बाद … मास्टरनी बन रमिया की बिटिया ने बतला दिया कि कागज़ पर उकेरी लकीरें, किस्मत की लकीरों पर भारी होती हैं।
अंजु गुप्ता ✍