कविता

काले मेघ अब बरस जाओ

आसमान में लुका छिपी का
खेल अब और न करो,
हमारी उम्मीदों पर
अब आरी न और चलाओ।
हे काले मेघ तरस खाओ
बस एक बार जमकर बरस जाओ,
धरा की प्यास बुझाओ
किसानों के बुझते चेहरों पर
अब तो मुस्कान लाओ।
प्रकृति की मुरझाती हरियाली को
संजीवनी तो दे जाओ।
सूखे हैं ताल पोखर
सूख रहे हैं नदियां नाले,
झूम के बरसो काले मेघा
उनके दामन को भी भर जाओ,
अब और न तरसाओ
काले मेघ बरस भी जाओ।
गर्मी से व्याकुल हम सब है,
बच्चे भी बिलबिला रहे हैं
पेड़ पौधे सूख रहे हैं,
पशु पक्षी भी व्याकुल हैं,
किसानों में भी बेचैनी है
देखो! विनती सभी कर रहे,
काले मेघ अब बरस भी जाओ।
लुकाछिपी अब बंद करो
इतनी सौगात अब दे ही जाओ,
हर ओर खुशियां बिखराओ
काले मेघ अब बरस भी जाओ।
केवल धरती की बात नहीं है
चारों ओर खुशहाली फैलाओ,
हर जीवन में शीतलता लाओ,
काले मेघ अब बरस भी जाओ।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921