कविता

जनसंख्या में भागीदारी

बड़ा दुःख होता है
कि आज चहुंओर जनसंख्या का
रोना रोया जाता है,
जैसे हमें कुछ समझ ही नहीं आता है।
सबको पता है जब
ईश्वर की मर्जी के बिना
एक पत्ता तक नहीं खड़क सकता,
तब भला ये कैसे मुमकिन है कि
ईश्वर की इच्छा के बिना
जनसंख्या का ग्राफ बढ़ सकता।
छोड़िए भी अब ये सब
बेकार की चिंता भर है,
जनसंख्या हो या महामारी
बेरोजगारी हो या भूखमरी
अभावों की दास्तां हो या फिर
भविष्य में होने वाली लाचारी
अथवा आने वाले कल में
भूख मिटाने के लिए
मानव के मानवभक्षी होने का
दिख रहा साफ संकेत।
कुछ भी कसूर हमारा तो नहीं
सब ऊपर वाले की इच्छा है,
ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध जाने की
न तनिक हमारी सदइच्छा है।
काहे को बेकार की माथापच्ची में
उलझकर अपना सुकून खोते हो,
मरना तो एक दिन सबको है
फिर इतना बेचैन क्यों होते हो?
जनसंख्या घटे या बढ़े मेरी बला से
बेरोजगारी, भूखमरी, महामारी या
पड़े अकाल आप क्यों व्याकुल हो,
आखिर ईश्वर की ही
जब सब मर्जी चलती है,
तो फिर सब उसकी जिम्मेदारी है,
हमारी तो बस इतनी सी
मात्र यही लाचारी है,
ईश्वर के काम में हमारी आपकी
बिना किसी दुविधा रोकटोक
या ईश्वर पर बिना ऊँगली उठाये
हम सबकी शानदार भागीदारी है।
क्योंकि हम ऐसे ही हैं
अपने पर दोष भला कब लेते हैं,
अपने कृत्यों का दोष
कभी इस पर कभी उस पर
और तो और ईश्वर को भी
समय पर मोहरा बना ही लेते हैं
बड़ी शान से अपने कृत्यों का
दोष उन पर भी मढ़ ही देते हैं,
बस अपना पल्ला झाड़कर
सदा ही निश्चिंत रहते हैं।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921