कविता

जीवन

मैंने जाना किसी को जीवन
देने में कितना सुख है
नहीं नहीं
सुख नहीं आनंद
क्योंकि सुख तो बाहरी स्थिति
और आनंद आंतरिक है
ये मैं आपको क्यों बता रहा हूं
क्या कोई नई बात कह रहा
या अपना ज्ञान बखार रहा हूं
ऐसा कुछ भी नहीं
हुआ यूं कि
मैंने लगाई थी
दो आम की गुठलियां दो गमलों में
वही गुठलियां जो आम खाने के बाद
फैंक दी जाती है कचरे में
रोज देखता था उन गमलों को
पानी से सींचता था
आज जब पड़ी उन गमलों पर मेरी नजर
तो झांक रहे थे
कोमल छोटे छोटे
शिशु से नाज़ुक दो पोेधे
उस घड़ी जो महसूस किया मैंने
उसी आनंद की मैं बात कर रहा
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020