गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल     

अब क्या बखान कौन हमारा नहीं रहा
वीरान आसमान सितारा नहीं रहा

जब नीर का भराव लिए ही नदी नहीं
सरसब्ज़ दूर-दूर किनारा नहीं रहा

सम्पूर्णत: समेट रखे आँख में उसे
जो आज एक अंश नज़ारा नहीं रहा

वो प्यार है अनन्य समाया अनंत में
उससे विमुख विचार गवारा नहीं रहा

ऐसा हुआ कि रूह मददगार बन गई
ऐसा नहीं हुआ कि सहारा नहीं रहा

दिल तोड़ता रहा कि कमर टूट ख़ुद गई
कल के समान दर्द क़रारा नहीं रहा

दुख की घटा विशेष हमारे नसीब में
लेकिन विशेष अश्रु-फुहारा नहीं रहा

— केशव शरण 

केशव शरण

वाराणसी 9415295137