कविता

सदा रहा पथ प्रदर्शक

सदा रहा पथ प्रदर्शक,
कैसे हो सकता है दर्शक?
सिर्फ नहीं रहा विमर्श,
सदा रहा उत्कर्ष।
जब जग में छाया अज्ञानता का अंधेरा ,
तब ज्ञानरूपी सूरज बन तम को घेरा।
 गुरु बन ज्ञान को बहाया।,
 इस धरती को स्वर्ग बनाया।
जब अज्ञानता के द्वार पर ज्ञान रेखा खींची थी। निर्माण भविष्य का करने को भाग्य रेखा बुनी थी।
सोये,अनघड़ भाग्य को जो देता विस्तार जहां।। तीनों कालों को संवारे और देता रूपाकार यहां।।
 नव -राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में जले, रात और दिन में ।
 विद्या के पुजारी का सम्मान हो तन और मन में ।
दुनिया के बाजार में ज्ञान-बुद्धि का सदा रहा रक्षक।
 सदियों से गुरुता की सीख देकर आज बना शिक्षक।
 जग में करता जीवन संचार ज्ञान की भरता जीवन-जोली।
 बुद्धि के उपकार से महक उठती दुनिया सारी। माया मोह का कर दो त्याग,
ज्ञान-विज्ञान के सूत्र से जन-जन में भर दो प्यार।
अज्ञानता की कारा को तोड़े पल में बंधन यहाँ।
 ऐसे ज्ञानदूत का करे बार-बार वंदन यहाँ।
— डॉ.कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773