दर्द
दर्द
जब बेपनाह बढ़ जाता है
थक हार
सो जाता है
आखिर उसकी भी तो एक सीमा है
और सीमा चुक जाने के बाद
सब कुछ समाप्त हो जाता है
कुछ भी शेष नहीं रहता
दर्द
जब बेपनाह बढ़ जाता है
थक हार
सो जाता है
आखिर उसकी भी तो एक सीमा है
और सीमा चुक जाने के बाद
सब कुछ समाप्त हो जाता है
कुछ भी शेष नहीं रहता