कविता

राम

राम-राम करते हो
तुम रावण बनने के
लायक भी नहीं।
ज्ञान-ज्ञान करते हो
तुम अज्ञानी बनने के
लायक भी नहीं।
ध्यान-ध्यान तुम करते हो
तुम ज्ञान के
लायक भी नहीं।
स्वयं को न जाना
न ही पहचाना कभी
फिर भी महाज्ञानी
बने फिरते हो।
राम तो कण-कण में रमते है
फिर भी तुम
क्षण-क्षण पाप कर्म
करते फिरते हो।

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233