पत्नि-पीड़ित पति की व्यथा
हास्य गीत
मैं रोज़ ही चाय बनाता हूं, कभी तुम भी तो चाय बनाया करो
चाय देने में अतुलित आनंद है, कभी उसका भी आनंद पाया करो-
1.तुम नारी हो घर की देवी हो, मैं भी तो पति परमेश्वर हूं
मैं तुझको रानी कहता हूं, तेरा भी तो सर्वेश्वर हूं
कभी मुझको भी राजा मानके तुम, चाय देकर मुझको उठाया करो-मैं रोज़-
2.माना तुम मेरे जैसी पढ़ी और वैसी ही नौकरी करती हो
बाकी सब करतीं धड़ल्ले से, क्यों चाय बनाते डरती हो?
कभी मैं भी बेड टी का आनंद लूं, इतना तो करम कमाया करो-मैं रोज़ ही-
3.बिटिया की चोटी गूंथने का, मुझे काम भला कहां आता है
बेटे को रेडी करने का, बस काम ही मुझको भाता है
कभी उनको भी तैयार करो, स्कूल में छोड़के आया करो-मैं रोज़ ही-
4.मैं रात का बना हुआ खाना, हर दिन ऑफिस ले जाता हूं
तुम छप्पन भोग बनाती हो, मैं शाम को बासी खाता हूं
कभी छप्पन भोगों के साथ ज़रा, थोड़ा रहम भी हम पर खाया करो-मैं रोज़-
(तर्ज़-बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले———)