कविता

दो पल जिन्दगानी

रेत पे बने घर,
बह कर भी तराशते है तुम्हे।
यादों के समुन्दर,
ढह कर भी पुकारते है तुम्हे।
न थे तुम,
दो पल जिन्दगानी।
वक्त गुजारी‌ या,
मौजो की रवानी।
थम जाये सांसे,
एहसासे मुहब्बत
बुलाते है तुम्हे।
यादों के समुन्दर,
ढह कर भी पुकारते है तुम्हे।
रूह से जुड़ा,
मोहब्बत का सिला।
बेजोड़ कीमती था,
प्यार जो मिला।
वो अनमोल पल,
क्या याद आते है तुम्हे।
यादों के समुन्दर,
ढह कर भी पुकारते है तुम्हे।
— चारू मित्तल

चारु मितल

कवयित्री व गजलगो, स्वतंत्र लेखिका व स्तम्भकार, जनपद-मथुरा,उत्तर-प्रदेश 9839650477