कविता

भाईचारा

यह एक ऐसी दुनिया है, यहाँ जीवी और अजीवी रहते हैं।
यहाँ सिर्फ़ इन्सान और जानवर ही नहीं,
हमारी आखों से चुपके, जादू करनेवाली जादू भी हैं।
जादू, वह क्या है?
एकता, सहजीवन, अहिंसा, प्यार ऐसी बहुत सारी चीज़ें हैं
हमारी आत्मा में।
मगर वे कैसे जादू हो सकते?
वे तो भाव हैं, जादू वाली चीज़ें कैसी हो सकती
और इनसे क्या फ़ायदा होंगे?
ये सारे भाव खूब समझाने कौन जानता है?
हमारे साथ इतने आदमी रहते हैं,
इनसे एक हिन्दू हो सकता है,
नहीं तो एक मुसल्मान हो सकता है,
ऐसे भी नहीं तो एक तमिल हो सकता है,
फिर भी ये सब लोग हमारे ही हैं।
धर्म से अलग हो सकता है, जाती से अलग हो सकता है,
लेकिन हम सब एक ही मातृभूमि के बच्चे हैं।
क्योंकि जो हमारे पूरे शरीर में बहनेवाले खून
इसे तो कोई भेद का फ़ायदा नहीं है,
लाल खून के बिना दूसरे रंग का खून, किसीके देह में है तो नहीं।
हम हैं ब्राह्मण – हम हैं क्षुद्र
हम हैं द्रविड़ – हम हैं पंजाब
हम हैं बौद्ध – हम हैं इस्लाम
हम हैं अमीर – हम हैं गरीब
हे भगवान…! यह कैसी बकवास है?
तो दोस्तो ध्यान रखो…!
भेद होना चाहे तो
हमारे पास कई कारण हो सकते हैं।
लेकिन किसी और से अधिक महत्तवपूर्ण बनना
हमारे सामने अदृश्य है।

मनुष्यता, सहजीविता, एकता, अहिंसा
ये सब हमारे रूह के अंदर जीते हैं,
लेकिन इस रूह के अंदर है।
ये सारी चीज़ें बाहर लेना हमारा काम है,
सिर्फ़ और सिर्फ़ हमारा।
थोड़ी देर लगाकर सोचो,
कोई एक दंडा लिया तो
बिना किसी मुश्किल से तोड़ सकता है वह।
मगर उसी समय पर
एक दंडे के अलावा कई दंडे लिये हैं तो
वे सब तोड़ना इतना आसान नहीं होता।
सच तो वही है न?
खुशी से जीने चाहे तो सभी एक साथ रहिए।
नहीं तो क्या होगा?
अकेला दंड़ा वह हमें बताएगा।
मिलकर रहना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
नहीं तो भेदभाव के कारण,
हमें होनेवाली मुसीबतों से बचाना
उस भगवान को भी इतना आसान नहीं होगा।

— नॉसिका यसन्ति मदुमानी

नॉसिका यसन्ति

मैं श्री लंका के केलनिय विश्वविद्यालय की एक हिंदी लेक्चरर हूँ