मुक्तक
ओमीक्रोन वायरस है लहराया,
करोना नव रूप धर फिर है छाया ।
खो अपने ग़र तू अब जो न संभला,
माटी-मोल फिर क्या जान है पाया ।।
———————
क्या लाया था क्या ले जा है पाया,
अंतर-नैन खोल क्यों है भरमाया ?
ज़रा तो हो जा पावन और निर्मल,
अपने कर्मों में हर फल है समाया ।।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’