हास्य व्यंग्य

चारण-पुराण

देश के इतिहास में एक समय ऐसा भी था,जो घोषित चारण – युग था। इसके विपरीत आज अघोषित चारण-युग है। प्राचीन चारण – युग में कवि रचनाकार कवि ही नहीं , राजाओं ,राज परिवारों और राजघरानों के अतिशयोक्ति परक चाटुकार ,पत्रकार औऱ अंधानुयायी भी थे।तिल का ताड़ बनाकर प्रशंसात्मक कविता कहना ,सुनाना और उनकी प्रशस्ति का गुणगान करना उनका प्रमुख उद्देश्य था।एक की दस, दस की सौ औऱ सौ की हजार करना उनका बाएँ हाथ का खेल था। इतना ही नहीं उनके मित्र राजा द्वारा किसी की सुंदरी पत्नी /पुत्री/प्रेयसी को प्राप्त करने या राज्य का विस्तार करने के लिए किए जा रहे युद्ध के मैदान में उनका उत्साह वर्द्धन करना भी उनका ही काम था। शृंगार से वीर रस की गंगा में ये चारण कवि ही तो गोते लगवाते थे।

संदर्भित चारण कवियों का अपनी लेखनी या मुँह /वाणी से चाहे जितना भी घनिष्ठ सम्बंध रहा हो , किंतु मेरी सोच के अनुसार उनका सम्बंध *’चरणों ‘* से अधिक था। जो राजा औऱ रानी के चरणों के जितना अधिक निकट सम्बंध स्थापित कर लेता , ख्याति की श्रेणी उतनी ऊपर चढ़ जाती थी। सम्भवतः ‘चरण – चुम्बन करना’, मुहावरे का जन्म भी तभी से हुआ होगा।आज उसका साक्षात स्वरूप जीवंत हो रहा है।जो राज परिवार, राज सेवक औऱ राज सम्बन्धियों का जितना अधिक सानिध्य प्राप्त कर ले, वह उतनी ही अधिक माखन- मिश्री,दूध- मलाई, बदन पर लुनाई ,देह पर चिकनाई का लाभ प्राप्त कर फ़र्श से अर्स की ऊँचाइयां हासिल कर लेता है।

वर्तमान कालीन युग के चारणों की सूची बहुत बड़ी है।रीतिकालीन कविवर बिहारी लाल ने भले ही सात सौ सोलह दोहा – सोरठा छंदों की सतसई लिखकर मिर्जा राजा आमेर नरेश जय सिंह से प्रत्येक छंद पर सोने की अशरफी प्राप्त की हो अथवा नहीं, परंतु आज के तथाकथित चारण – वृंद ऐसा एक भी सुनहरा अवसर हाथ से खाली नहीं जाने दे सकते।चाहे वे टीवी पत्रकार हों, अखबार या अखबारी पत्रकार हों, चापलूस कवि हों, चरण – चुम्बन के बिना ऊपर जा ही नहीं सकते।छुटभैये समाज सेवी, अंधानुकरण में आपादमस्तक डूबे हुए बैनर पोस्टर लगाने वाले, गड्ढे खोदने वाले (अब ये कैसे कहें कि वे किसके लिए गड्ढे खोदते हैं, अपने लिए तो कदापि नहीं खोदते होंगे।), प्रचारक, परचम लहरावक अथवा कोई अन्य। सबका एक ही उद्देश्य है,चाहे वह सत्ता कैसी भी क्यों न हो।

सत्य को पर्दे में छिपाना औऱ सत्ता /सत्ताधीश का बिगुल बजाना, यही उनका एकमात्र लक्ष्य है। देश की क्या ? पहले राजा ,राजनेता, राजनीति, सत्ता, जिसकी इच्छा के बिना हिलता नहीं पत्ता। वही देश है ,उसी की भक्ति देशभक्ति है। इसीमें उनकी मुक्ति है , चाहे आम आदमी की हो या न हो। *जब आम आदमी की मुक्ति हो ही गई ,फिर नेताओं का होगा भी क्या ! क्या होगा चुनाव का।* चुनाव ही तो चुन चुन कर पार उतारता है। यह तो उसकी इच्छा है कि किसे उतारे किसे नहीं भी उतारे! जो उसकी नित्य आरती उतारे, उसी को वह अपने सिर पर धारे।

चारण के लिए चरणों का सोपान अनिवार्य है। वह नख को छूकर शिखा तक पहुँच यों ही नहीं बना पाता। इसी से नख-शिख शब्द शृंगार के शब्दकोश में आया प्रतीत होता है।यही तो शृंगार -चित्रण की भारतीय पद्धति है।नीचे से पहाड़ पर चढ़ती हुई पिपीलिका सर्वोच्च शिखर पर जा पहुँचती है, तो फिर महान चारण जी तो उस नन्हीं पिपीलिका से लाखों करोड़ों गुणा विशाल हैं,महान हैं,ज्ञानवान हैं ,गुणवान हैं। वे तो पहाड़ से भी ऊपर हेलीकॉप्टर यात्रा के मेहमान हैं। मेरा देश इसीलिए तो महान है।

अभी आपने यह जाना कि चारण का विशेष औऱ घनिष्ठ सम्बंध ‘चरणों ‘ से है। *चरणों के साथ -साथ ‘ रण ‘ से भी उनका विशेष सम्बंध रहा है।* रण की चाह में चापल्य ,चूना चिपकाने में जो चतुर हो, वही सफल ‘चारण’ की पदवी धारण कर सकता है।चपलता, चतुराई,चटुलता, चमत्कारिता, चश्मबद्दूरी ( बुरी नज़र से दूर हटाने वाला) की चाशनी चिपका पाए , वही सच्चा ‘ चारण’।

आज ‘चारण’ के बिना नहीं होता शंका निवारण।जब चापलूस ‘ चारण ‘ कहेगा कि आपको लघु शंका निवारण करनी होगी ,तो कर लीजिए, आइए मैं कुछ मदद कर दूँ ! तभी उन्हें याद आएगा कि अरे! आप तो बहुत अच्छे हैं!
अन्यथा …….पता नहीं क्या हो जाता !

यों तो ‘चारण-पुराण’ की कथा अंनत है। हर चारण आज के युग का आधुनिक संत है , उसी से सियासत के खेतों में वसंत है, किन्तु चारण के आचरण, चरण औऱ संचरण पर सियासती धनवंत है।वह राजनीति के देवालय का ऐसा महंत है, कि उसके बिना न पूजा है , न पाठ और नहीं आरती।जब आरती ही नहीं ,तो प्रसाद मिलेगा भी क्यों? आरती के बाद फिर वही पुरानी बात: ‘अंधा बाँटे रेवड़ी ………’

 

– डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040