विधु ! छोड़ अब व्योम चला जा!
मुस्काया प्राची-पथ दिनकर,
गुंचे पर मड़राया मधुकर,
नीड़ त्यागकर मधुर कंठ से,पख़ी, नवल नवगीत सुना जा।
विधु ! छोड़ अब व्योम चला जा।
स्वर्ण-रश्मि ले दिनकर निकला,
नभ का कोना-कोना उजला,
शस्य-श्यामलं-हरित-धरा पर,मधुर गंध भर सुमन खिला जा।
विधु ! छोड़ अब व्योम चला जा।
हटा विषाद का गहन अंँधेरा,
नव-प्रभात को दे अब पहरा,
मलय गिरि बह चली पवन पर,केसर के नव -मुकुल झुला जा।
विधु ! छोड़ अब व्योम चला जा।
देख तरु से लोटे नभचर,
स्नेह-सुखद कलरव सरि-तट पर,
बिछुड़ गया जो युगल निशा में,विरह मिटादे पुन: मिला जा।
विधु ! छोड़ अब व्योम चला जा।
— हेमराज सिंह ‘हेम’