जितेंद्र कबीर के मुक्तक-पोस्टर्स- 2
कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. जितेंद्र भाई बचपन से ही कबीर के लेखन से प्रभावित रहे हैं, सम्भवतः ही इसलिए उनके लेखन में भी कुछ-कुछ वही गुण आ गए हैं. फर्क यह है, कि कबीर ने दोहे लिखे हैं और जितेंद्र भाई ने मुक्तक. पोस्टर से मुक्तक को अतिरिक्त प्रभावी बनाना इनकी विशेष विशेषता है.
जितेंद्र भाई की एक और विशेषता है- त्रुटि रहित लेखन. चित्रों और पोस्टर्स के अधिकतर कलाकारों की कला में त्रुटियां होने के कारण चित्र पर मोहित होकर दृष्टि अटककर रुक नहीं जाती और उसे छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं, पर जितेंद्र भाई के पोस्टर्स त्रुटि रहित होने, भावानुकूल भाषा और सुंदरता से सराबोर होने के कारण दृष्टि को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम हैं. एक उदाहरण देखिए-
“शांति धारण कर रखी है
बाहर से तो,
भीतर भी कोई उबाल नहीं है
क्या?”
त्रुटि रहित भावानुकूल भाषा बिना पोस्टर के भी दृष्टि और मन को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है.
जरा इस मुक्तक को देखिए-
“तुम्हें पुकारती मेरी हसरतें
समाए जा रही हैं
तुम्हारे सब्र के ब्लैक होल में,
वापस जहां से आना
किसी प्रतिक्रिया का
मुमकिन ही नहीं।”
जितेन्द्र ‘कबीर’
इस मुक्तक में जितेंद्र भाई के विज्ञान की समझ को देखिए. जितेंद्र भाई ने ब्लैक होल का सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है. ब्लैक होल को हम वैसे समझ पाएं या नहीं, जितेंद्र भाई का मुक्तक आसानी से समझा देता है.
कृष्ण विवर या ब्लैक होल, सामान्य सापेक्षता में, इतने शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र वाली कोई ऐसी खगोलीय वस्तु है, जिसके खिंचाव से प्रकाश-सहित कुछ भी नहीं बच सकता. कृष्ण विवर के चारों ओर घटना क्षितिज नामक एक सीमा होती है जिसमें वस्तुएँ गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर नहीं आ सकतीं.
जितेंद्र भाई, इतने खूबसूरत साहित्यिक पोस्टर्स से रू-ब-रू करवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.