बसंत बहार
खिल गई कलियॉ रंग विरगीं
दुल्हन बन है श्रृंगार किया
मौसम के रथ पर ऋतुराज वसंत
धरा पर है अवतार लिया
फूलों की महक से चमन में
यौवन को है बेकरार किया
कोयलिया की कूहू कूहू स्वरलहरी
अमवां की मंजरी से प्यार किया
पपीहा गुम सुम डाली पर क्यूँ बैठी
तेरा परदेशी का है तार आया
फागुन में आयेगा तेरा सांवरिया
डाकिया ने है संदेशा तेरा लाया
पतझड़ को कह दो यहाँ ना आये
सँकरी गली से चुपके से खिसक जाये
ऋतुराज बसंत का धरा पर है साया
पूरवईया ने है युवा को बहकाया
ढोल डफली मंजीरा ले आओ
मस्ती में होली सब गाओ
रंग अबीर उड़े अब महफिल में
मधुमास थिरके यौवन के घर में
गम विरह वेदना पथ से हट जाना
उमंग बसंत का है सब दीवाना
आओ री सजनी चमन में घुल जायें
मस्ती की आलम में छुप जायें
— उदय किशोर साह