राजनीति

कल्याण सिंह को पद्म विभूषण के राजनैतिक निहितार्थ

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए अपनी सरकार को भी दांव पर लगा देने वाले प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह को मरणोपरांत पद्म  विभूषण का जो सम्मान मिला है उससे समस्त रामभक्तों और अयोध्या आंदोलन से जुड़े रहे प्रत्येक व्यक्ति को बहुत ही गर्व और  आनंद की अनुभूति हो रही है। वास्तव में स्वर्गीय कल्याण सिंह का सम्मान सम्पूर्ण हिंदू सनातन संस्कृति का सम्मान है। श्री कल्याण सिंह का प्रदेशकी राजनीति में ऊँचा कद होने के साथ साथ  प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने में महती भूमिका भी थी।

चूँकि वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में विधनसभा चुनावां की बयार बह रही है और सभी दल अपने तरकश के तीरों को मजबूती दे रहे हैं और ऐसे समय में कल्याण सिंह जी को पदम विभूषण से सम्मानित करने के राजनीतिक निहितार्थ भी तलाशे जाने लगे हैं। कल्याण सिंह जी बड़े कद के नेता थे और उनका प्रदेश की कई विधानसभा सीटों पर गहरा प्रभाव रहता था। राजनैतिक विष्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि भाजपा ने कल्याण सिंह का सम्मान करके एक तीर से कई निशाने साधे हैं जबकि सेकुलर व लिबरल लोगों को यह सम्मान खटक रहा है।

ओबीसी या पिछड़ा वर्ग में आने वाले लोधों की रूहेलखंड के बरेली, बदायूं , रामपुर आदि और ब्रज क्षेत्र आगरा, अलीगढ़, एटा, हाथरस आदि की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका है और भाजपा हिंदुत्व के नायक कल्याण सिंह का सम्मान करके इन सभी क्षेत्रों में अपनी बढ़त बनाने का प्रयास करेगी। अपने सी में  कल्याण सिंह की राज्य की कम से कम 20 फीसदी आबादी पर मजबूत पकड़ थी। इन 20 फीसदी लोगों और 15 प्रतिशत सवर्णां के साथ मिलकर बीजेपी ने पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी थी।

वोट बैंक के कारण आज हिंदू धर्म व हिंदुत्व के प्रति इतनी अधिक नफरत फैलायी जा रही है कि जब कल्याण सिंह जी का निधन हुआ उस समय भी बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर किसी भी अन्य दल की ओर से सामान्य औपचारिक शोक संदेश भी नहीं आया था। आज यही लोग सोशल मीडिया पर स्वर्गीय कल्याण सिंह का एक बार फिर अपमान कर रहे हैं।

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को सम्मानित किया गया। आज अगर हम सभी हिंदू समाज के लोगों  को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के पूर्ण वैभव के साथ बनते देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है तो इसमें स्वर्गीय कल्याण सिंह जी की बड़ी भूमिका है  जिन्होंने श्रीराम मंदिर के लिए अपनी सरकार भी  दांव पर लगा दी थी। आखिरकार , बहुत कम लोगों  के पास अपने कार्यो के माध्यम से एक पूरी पीढ़ी को आकार देने की शक्ति होती है और कल्याण सिंह ने निश्चित रूप से अपनी उस शक्ति का प्रयोग किया था।

लेकिन सेकुलर -लिबरल लोग जिन्हें अयोध्या पर सुप्रीम फैसला तक रास नहीं आया वे  लोग आज भी कल्याण सिंह का  विरोध कर रहे हैं। तथाकथित पत्रकार राजदीप सरदेसाई कह रहे हैं कि,“ चूंकि हम  छोटी यादों वाले देश हैं यह मत भूलिए कि 1992 में जब बाबरी  मस्जिद गिरायी  गयी  था तब कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे आज उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिला है।” सोशल मीडिया पर ऐसे ही कई तथाकथित धर्मनिरपेक्ष  लगातार  अपनी जहरीली और नफरत भरी भड़ास निकाल रहे हैं।

वास्तविकता यह है कि कल्याण सिंह हिंदू हृदय सम्राट थे। कल्याण सिंह का व्यक्तित्व और उनके कार्यों को किसी परिचय की आवश्यकता  नहीं है। ”न खेद, न पश्चाताप  न प्रायश्चित ” यह शब्द थे यशस्वी कल्याण सिंह के जब उनसे प्रश्न  हुआ कि, ”क्या उन्हें बाबरी के विध्वंस पर पश्चाताप  है।“ यह सत्य भी था कि रामजन्मभूमि पर बनाई गई अवैध मस्जिद के टूटने पर कल्याण सिंह को एक प्रतिशत भी पश्चाताप  नहीं था। ना कभी उन्होंने बाबरी विध्वंस को दुख अथवा शर्म का कारण माना। वह प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री बन गये जिन्होंने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए अपनी सरकार दांव पर लगा दी।

कल्याण सिंह जी  मात्र  एक नेता नहीं बल्कि स्वयं में एक आंदोलन थे। राम मंदिर निर्माण को लेकर उनका योगदान देश कभी नहीं भूलेगा। उप्र की जनता के लिए उन्होंने जो योगदान दिया वह भी एक राजनीतिक इतिहास बन गया है। स्वर्गीय कल्याण सिंह जी निष्चय ही हिंदुत्व के प्रति समर्पित एक लोकप्रिय व सर्वप्रिय नेता थे और उन्होंने कभी भी स्वयं को हिन्दुत्ववादी  छवि से अलग नहीं किया । उन्होंने 6 दिसम्बर 1992 के दिन अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने से साफ मना कर दिया और बाबरी मस्जिद की आखिरी ईंट गिरते ही अपनी सरकार का त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया।

राजनैतिक यात्रा-  5 जनवरी 1932 को जन्मे  कल्याण सिंह बाल  स्वयंसेवक थे अतः  राष्ट्रप्रेम और हिंदुत्व का भाव उनकी रग रग में भरा था। शिक्षा पूरी होने के बाद इन्हें अध्यपाक की नौकरी मिल गयी किन्तु ईश्वर ने तो उन्हें बड़े कार्य के लिए धरा पर भेजा था । एक दिन उनका जीवन अध्यापन से  राजनीति की ओर चल पड़ा ।

कल्याण सिंह जी की राजनैतिक यात्रा 1967 से अतरौली विधानसभा से शुरू हुई और अपना पहला चुनाव जनसंघ से लड़ा और फिर दस बार विधायक व दो बार सांसद चुने गये। वह 1985 से 2004 तक विधायक रहे। वह 1977 से 79 तक प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री, 1980 में भाजपा के महामंत्री 1987 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने। 24 जून 1991 से लेकर वह छह दिसम्बर 1992 तक प्रदेश के पहली बार मुख्यमंत्री रहे । वह 2004 से 9 तक लोकसभा सदस्य रहे। फिर 2009 में भी लोकसभा सदस्य रहे 2014 में लोकसभा से त्यागपत्र दिया और फिर राजस्थन व हिमांचल के राज्यपाल भी रहे।

1991 में प्रदेश में पहली बार उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और वे  उसके मुखिया। भाजपा की यह  सरकार राम मंदिर के ही नाम पर बनी थी और उसी पर वह सत्ता से विमुख भी हो गयी थी। फिर 1997 में भी कल्याण सिंह ने बसपा नेत्री मायावती के साथ मिलकर सरकार बनायी लेकिन राजनैतिक कारणों से वह अधिक दिनों तक नहीं चल सकी थी।

कल्याण सिंह जी को केवल राम मंदिर के लिए ही याद नहीं किया जायेगा अपितु उन्हें कई और कार्यों  के लिए भी याद किया जायेगा। उन्हें प्रदेश में नकल विरोधी कानून बनाकर शिक्षा में शुचिता लाने, राजनैतिक दावपेंच में जगदम्बिका पाल की राजनीति को पटखनी देने तथा मंडल की राजनीति के शोर र के समय कमंडल की राजनीति करते हुए भी पिछड़ों  को अपने साथ जोड़े रखने के लिये याद किया जायेगा । यह कल्याण सिंह का ही प्रयास था कि आज पूरे भारत का पिछड़ा समाज भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ रहा है। मंडल कमीशन की आग को रोकने के लिए उन्होंने सामाजिक समरसता का फार्मूला सुझाया था।

कल्याण सिंह जी की सबसे बड़ी उपलब्धि थी नकल कानून पर अध्यादेश, जब वह 1991 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब तत्कालीन शिक्षा  मंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर उन्होंने कड़ा कानून बनाया और नकल को संज्ञेय अपराध भी घोषित किया। जिसके कारण उनके षासन काल में पहली बार नकल करने वाले छात्रों को जेल जाना पड़ा और यह कानून पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया था और उन पर कानून वापस लेने का दबाव भी बनाया गया लेकिन वह इसके लिए तैयार  नहीं हुए जिसका राजनैतिक नुकसान भी बीजेपी को उठाना पड़ा क्योंकि युवा वर्ग काफी नाराज हो गया था।

कल्याण सिंह की सरकार के दौरान प्रदेश की कानून व्यवस्था सबसे अच्छी थी। कानून व्यवस्था पर जब बहस होती है तो कल्याण सिंह को अवश्य  याद किया जाता है और कहा जाता है  कि वही एक ऐसी सरकार थी जिसमें बेटियां  देर रात तक अकेले घूम सकती थीं और बाजारों में किसी प्रकार की छेड़छाड और चेन छीनने जैसी वारदात तक नहीं होती थी। सरकारी अफसरों के बीच भी उनकी एक हनक और धमक थी। संगठित अपराधों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होती थी। एक दिन में समूह ”ग“ की एक लाख भर्ती के लिए परीक्षा कराई। भ्रष्टाचार के आरोपों पर कड़ी कार्यवाही की। कल्याण सिंह जी अपनी राजनैतिक यात्रा में किसी दबाव में नहीं झुके और उनका पूरा राजनैतिक जीवन पूरी तरह से बेदाग रहा। कल्याण जी पर भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का कोई आरोप कभी भी नहीं लगा । भारतीय राजनीति में वे एक विरल व्यक्ति थे उनके जैसे व्यक्तित्व का मिलना बहुत ही कठिन है।

कल्याण सिंह जी भाजपा की जय पराजय, और पुनरूत्थान के सूत्रधार थे। भारतीय जनता पार्टी व हिंदुत्व की विकास यात्रा में उनका अमूल्य योगदान है। वह हिंदुत्व के प्रति पूरी तरह से समर्पित नेता थे। कल्याण सिंह वास्तव में इतिहास पुरूष बन गये हैं और वह अमरता को प्राप्त हो चुके हैं। वह शुचिता की राजनीति करने वाले लोकप्रिय जननेता थे। राम मंदिर आंदोलन  में वह भरोसे के नेता साबित हुए। पूरे समर्पण भाव के साथ उन्होंने राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व किया। वह बराबर अयोध्या जाकर आंदोलन में शामिल  रामभक्तों का मनोबल बढ़ाते थे।

दो नवंबर 1990 की घटना के बाद रामभक्तों को उन्होंने विश्वास  दिलाया कि निकट भविष्य में ऐसी सरकार आने वाली है जो पुष्पवर्षा कर रामभक्तों  का अभिनंदन करेगी। वास्तव में अब योगी सरकार उनके सपनों  को पूरा करने में लगी हुई है। अयोध्या में अब भव्य दीपोत्सव का आयोजन हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण प्रारंभ  हुए भी अब एक वर्ष हो गया है। बाबू जी की वह अंतिम इच्छा नहीं पूरी हो सकी जिसमें वह चाहते थे कि वह अयोध्या में बन रहे भव्य श्रीराम मंदिर के दर्शन  करके ही अपना शरीर छोडूँ। लेकिन कम से कम उनके लिए यह सौभाग्य की ही बात रही कि उनके सामने मंदिर निर्माण प्रारंभ  हो गया।

— मृत्युंजय दीक्षित